11th June 2015
आपके बच्चे बड़े होकर अपने संस्कारों और सभ्यता का पालन करें इसके लिए घर के बड़ों को खुद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता का पालन करना बेहद जरूरी होता है। वो क्यों? आइए जानें विस्तार से-
भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृतियों में गिनी जाती है। इस देश के संस्कार और परम्पराओं के चर्चे अन्य देशों में खूब किये जाते हैं और यही कारण है कि विदेशी लोग हमारी इस संस्कृति और सभ्यता के साक्षी बनने के लिये हमारे देश में पधारते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हमारे आचार-विचार और व्यवहार पर पाश्चत्य सभ्यता का गहरा असर देखने को मिल रहा है। दुख की बात है कि सदियों से हमारे देश की धरती में रची-बसी सभ्यता व संस्कृति पर पाश्चत्य संस्कृति हावी होती रही है और हम अपनी मूल्यवान परंपरा और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार को आदर्श मानने वाले हम लोग अब केवल पति-पत्नी और बच्चों वाले एकल परिवार में सिमट गये हैं।
परिवार छोटे होने के बावजूद हम अपने बच्चों को संस्कार सिखा पाने में असफल हो रहे हैं। जैसे कि पैर छू कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेना भारतीय संस्कार का अभिन्न अंग है, बच्चे हों या जवान सभी अपनों से बड़ों के पैर छूकर उन्हें प्रणाम कर आशीर्वाद लेते थे लेकिन ऐसे भारतीय संस्कारों की झलक अब हमें कम ही देखने को मिलती है। अब तो पैर छूना ओल्ड फैशन माना जाने लगा है, पाश्चत्य सभ्यता की तर्ज पर छोटे अपने बड़ों को हाय-हैल्लो कहना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। पैर छूना उन्हें पिछड़ेपन का अहसास कराता है, वहीं हाथ हिला-हिला कर हाय-हैल्लो कहना उन्हें आधुनिकता की पहचान लगता है। बच्चे अपने परिवार का ही भविष्य नहीं हैं बल्कि पूरे देश का भविष्य हैं। हमारे लिये बेहद जरूरी हो जाता है कि हम अपने देश की सभ्यता और संस्कारों की नींव उनमें अवश्य डालें। विडंबना है कि अन्य देशों में जहां हमारी संस्कृति को काफी ऊंचा दर्जा दिया जाता है, वहीं हमारे देश में यह संस्कृति और परंपराएं धूमिल होती जा रही हैं। इस बारे में श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट की क्लीनिक साइकॉलोजिस्ट पल्लवी जोशी कहती हैं कि भारतीय संस्कृति में लग रही सेंध के लिये केवल पश्चिमी सभ्यता को दोषी ठहराना ठीक नहीं है, यहां बहुत से ऐसे कई अन्य कारण हैं जिनसे हमारे समाज के बच्चे अपनी परंपरा और संस्कृति से कटते जा रहे हैं।
बच्चे क्यों भूल रहे हैं संस्कार
डॉ. पल्लवी कहती हैं कि मेरे पास कई ऐसे मामले आते हैं जिनमे माता-पिता अपने बच्चों को लेकर परेशान होते हैं। वो अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे उनसे कोई खास लगाव नहीं रखते हैं, उन्हें किसी बात पर टोको तो नाराज हो जाते हैं और लड़ाई-झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति को तो जैसे वो जानते ही नहीं हैं। हम तो अपने बच्चे की हर खुशी और उसकी सारी जरूरतें पूरी करते हैं, हमने तो बच्चे को हमेशा अच्छी बातें ही सिखाने का प्रयास किया था, पता नहीं हमारे बच्चे ऐसे कैसे हो गए। वो सारा दोष टीवी, फिल्मों या फिर पश्चिमी सभ्यता पर मढ़ देते हैं। अपने बच्चों के संस्कारहीन होने के लिये खुद को जिम्मेदार मानने के लिये तैयार नहीं होते हैं। बच्चों के इस व्यवहार के लिये मैं सबसे पहले अभिभावकों को ही जिम्मेदार मानती हूं, क्योंकि बच्चा वही आदतें अपनाता है या वैसा ही व्यवहार करता है जैसे वो अपने आस-पास देखता है। एक बेसिक सी बात है कि किसी बात को सीखने का एक लर्निंग प्रोसेस होता है, जिसे अधिगम भी कहते हैं और वो केवल देखने से ही होता है। बच्चे को मां-बाप बातों के जरिये चाहे कितना भी समझा लें लेकिन वो उन बातों को आदतों में तब तक नहीं लायेगा जब तक कि वो उन बातों को एक्शन के रूप में अपने सामने नहीं देखता है। मतलब साफ है कि बच्चा ठीक वैसा ही करता है जैसा वो अपने बड़ों को करता देखता है।
स्वयं भी अपनाएं संस्कार
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