दिव्या कौशिक
6th September 2019
मुझे नाटकों में भाग लेने और लिखने का शौक बचपन से ही रहा है। इसलिए जब मेरी शादी की बात चली तो अपने होने वाले पति की लेखन क्षमता से प्रभावित होकर मैंने रिश्ते के लिए हां कर दी। शादी के कुछ साल बाद एक रोज हमारा किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ।
गुस्से में आकर मेरे मुंह से निकला कि मैं तुमसे तंग आ गई हूं, इससे अच्छा तो यह होता कि मैं कुंआरी रह जाती। मेरा इतना कहते ही ये तपाक से बोल पड़े, 'हमने तो सुना था कि तुम कॉलेज के दिनों में स्टेज पर द्रौपदी का रोल कर चुकी हो। जिसने पांच पति संभाले हों वो आज एक अकेले पति से तंग कैसे आ सकती है? उनकी बात सुनते ही मेरा सारा गुस्सा छूमंतर हो गया और मैं शर्म से लाल हो गई। उनकी हंसी में मेरी हंसी और झेंप दोनों शामिल थे।
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