12th September 2019
14 सिम्बर का महीना आते ही साहित्य के गलियारे में सुगबुगाहट तेज हो जाती है, कथित लेखक और बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोगों में हिंदी पखवाडा़ मानने की होड़ सी मच जाती है। ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि हिंदी पखवाड़ा मनाना मजबूरी है या मोहब्बत। वरिष्ठ साहित्यकार और जानमाने व्यंग्यकार अनूप श्रीवास्त्व जी की कविता हिंदी में मुस्कराया इसी सवाल का जवाब है।
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