9th February 2017
माघ माह की इस पूर्णिमा को इसलिए खास माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आखिरी दिन स्नान करके अपने लोकों में लौट जाते हैं। व सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन दान-पुण्य, स्नान करता है उसे समस्त दोषों से मुक्ति मिल जाती है।
कांतिका नगरी में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह नि:संतान था। बहुत उपाय किया, लेकिन उसकी पत्नी रूपमती से कोई संतान नहीं हुई। ब्राह्मण दान आदि मांगने भी जाता था। एक व्यक्ति ने ब्राह्मण दंपत्ति को दान देने से इसलिए मना कर दिया कि वह नि:संतान दंपत्ति को दान नहीं करता है। लेकिन उसने उस नि:संतान दंपत्ति को एक सलाह दी कि चंद्रिका देवी की वे आराधना करें। इसके पश्चात ब्राह्मण दंपत्ति ने मां काली की घनघोर आराधना की। 16 दिन उपवास करने के पश्चात मां काली प्रकट हुईं। मां बोलीं कि "तुमको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। अपनी शक्ति के अनुसार आटे से बना दीप जलाओं और उसमें एक-एक दीप की वृद्धि करते रहना। यह कर्क पूर्णिमा के दिन तक 22 दीपों को जलाने की हो जानी चाहिए।" देवी के कथनानुसार ब्राह्मण ने आम के वृक्ष से एक आम तोड़ कर पूजन हेतु अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी इसके बाद गर्भवती हो गयी। देवी के आशीर्वाद से देवदास नाम का पुत्र पैदा हुआ। देवदास पढ़ने के लिए काशी गया, उसका मामा भी साथ गया। रास्ते में घटना हुई। प्रपंचवश उसे विवाह करना पड़ा। देवदास ने जबकि साफ-साफ बता दिया था कि वह अल्पायु है, लेकिन विधि के चक्र के चलते उसे मजबूरन विवाह करना पड़ा। उधर, काशी में एक रात उसे दबोचने के लिए काल आया, लेकिन व्रत के प्रताप से देवदास जीवित हो गया।
ये भी पढ़ें -
निर्जला एकादशी: इसी व्रत से मिला था भीम को स्वर्ग
घर में सुख-शांति चाहिए तो भूल कर भी न करें ये काम
शक्तिदायक है गायत्री मंत्र का जाप, अनोखी है महिमा
शक्ति का नाम नारी, धैर्य, ममता की पूरक एवम् समस्त...
बचत करना जरूरी है लेकिन खर्च भी बहुत जरूरी है। तो बात...
कोलेस्ट्रॉल कम करने के आसान तरीके
एक दिन में कोई शहर घूमना हो तो आप कौन सा शहर घूमना...