ख्वाबों से आंख मिचौली करने की अब ऐसी आदत पड़ गई थी कि रितु जान ही नहीं पाती थी कि क्या सच है और क्या झूठ… क्या उसकी मां का उसे छोड़कर जाना झूठ था या उसके पापा का दिन-रात साथ रहकर उसकी देखभाल करना और अपने बालों में काली डाई लगाते हुए उम्र को धोखा देना… उम्र की लुकाछुपी सच थी या बचपन का जवानी से आंखों में आंसू भरकर मुस्कुराते हुए विदा लेना, कभी दुबारा लौटकर ना आने के लिए। भीगी आंखों को पोंछते हुए उसने दीवार घड़ी की ओर बड़े ही अनमने ढंग से देखा, जैसे उसे पता था कि रात के दो तो बज ही रहे होंगे। उसका अंदाजा बिलकुल सही था, रात के दो बज रहे थे, पर रोज की तरह उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी।

नींद आखिर आती भी कैसे, उसके पापा जो समाज की जिम्मेदारियों से ग्रस्त थे और जिनके इशारे के बिना मेरठ शहर का पत्ता भी नहीं हिलता था, उनके घर आने का अभी समय ही कहां हुआ था। बाहर की समस्या सुनने के लिए वो कितनों के घर जाते थे, ये बात वो उम्र के उस पड़ाव पर आते ही जान गई थी, जिसे किशोरावस्था कहते है। एक ऐसा दौर, जहां न तो बच्चों के साथ खेलने की उम्र होती है और न बड़ों के बीच बैठने की इजाज़त, बस फुटबॉल की तरह इधर से उधर लुढ़कते रहो और लोग तुम्हें लातों से मार मारकर गोल करते हुए तुम्हें ठोंक पीटकर गोल भी बनाते रहे। पापा की उसे बहुत याद आ रही थी, अचानक उसे जोरों से हंसी आई और वो हमेशा की तरह फ्रिज से लिमका निकाल कर बैठ गई। ‘इतनी रात में किसके यहां फोन करे और क्या कहे कि शहर का कमिश्नर दूसरों की समस्याओं का हल खोजते खोजते खुद ही लापता हो गया है।

कौन उसकी बात पर विश्वास करेगा कि दिन की उजली धूप में शराफत से नहाया हुआ कोई पुरुष रात होते ही अमावस के चांद की तरह गायब हो जाता है। अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ, वो अपनी मां की पुरानी फोटो लेकर बैठ गई और मुस्कुराती हुई मां की तस्वीर देखकर न चाहते हुए भी उसके आंसू बह चले। थोड़ी देर तक धीरे-धीरे रोने के बाद उसकी रुलाई फूट पड़ी और पागलों की तरह जमीन पर सर मारते हुए वो भरभराकर रो पड़ी। मां उसे क्यों छोड़ कर चली गई, ये उसे कभी पता नहीं चल पाय। उसे अच्छे से याद है, वो उस समय दस साल की थी जिस दिन उसकी मां ने लाल साड़ी पहनकर उसके गाल में मुस्कुराते हुए हलकी सी चिकोटी काटते हुए पूछा था, ‘मैं कैसी लग रही हूं?’ और वो अपनी बेइन्ताह खूबसूरत मां को एकटक देखती रह गई थी। उसकी मां इतनी सुन्दर, इतनी गोरी चिट्टी उसे मानों खुद पर गर्व हो आया था कि उसकी मां उसकी सभी सहेलियों की मां से सुन्दर है… सबसे सुन्दर और सबसे प्यारी।

और वो दौड़कर उनके गले लिपट गई। थी गीले लहराते बालों से गिरती हुई पानी की बूंदों को पकडऩे के लिए वो अपनी मां के पीछे-पीछे दौड़ा करती थी और आखिरी में थककर जब वो अपने घुटने पकड़ कर बैठ जाती तो मां बड़े ही ह्रश्वयार से उसके नजदीक आकर उसके ऊपर गीले बाल झटकती, जिससे वो खुशी से झूम उठती। रितु का हाथ जैसे अचकचाकर अपने ऊपर की बूंदों को हटाने के लिए अपने आप ही उठ गया। उसे सिर्फ अपनी मां की ही याद थी, बचपन के झरोखों से झांकने पर… क्योंकि पापा तो हमेशा से ही नाम और पैसों के दीवाने थे। सुबह हो या शाम और या फिर रात, उसने खुद को मां की ही गोद में पाया, फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि मां उसे बिना बताए ही चली गई।

उसे आज भी याद है… स्कूल की पेंटिंग प्रतियोगिता में जब उसे फस्र्ट प्राइज़ मिला था और वो दौड़ती हुई घर भागी थी। मां को सबसे पहले अपना प्राइज दिखने। दरवाजे से ही उसने मां को पुकारना शुरू कर दिया था, पर जो मां उसके स्कूल से लौटने के पहले ही पलकें बिछा, धधकती धूप और कड़कड़ाती सर्दी में हमेशा खड़ी रहती थी वो आज कहां चली गई थी। दरवाज़े पर लगातार घंटी बजाते हुए जब उसके नन्हें नन्हें हाथ थक गए, तो वो रोती हुई अपना भरा हुआ टिफिन हाथों में पकड़े दरवाजे पर ही सो गई। आंख खुली तो उसने खुद को बिस्तर पर पाया। पास ही पापा के साथ डॉक्टर अंकल थे।

पापा उसे देखकर चिंतित स्वर में बोले, ‘बेटा, आपने सुबह से खाना नहीं खाया और आपका टिफिन भी भरा हुआ है, तभी देखिये आपको कितना तेज फीवर आ गया है।’ उसने पापा को ऐसे देखा मानों कोई मेहमान हो। ना तो उसे उनकी इन बातों में अपनापन दिखाई दिया और ना ही प्यार, बस एक तरह का रटा रटाया वाक्य था जो डॉक्टर अंकल को दिखाने के लिए बोला जा रहा था। उसका सोचना बिलकुल सही था, जैसे ही डॉक्टर अंकल बाहर गए, पापा का भरपूर चांटा उसके गाल पर पड़ा। उसने दर्द से चीखते हुए मां को याद कर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। नौकरानी को बुलाकर उसे दवाइयां दिखाते हुए पापा ने कुछ कहा और तेजी से बाहर चले गए। नौकरानी बहुत भली थी, उसने प्यार, मनुहार से उसे किसी तरह खाना और दवाइयां खिला ही दी। जैसे ही उसे थोड़ा सा प्यार और अपनापन मिला वो नौकरानी के गले लग कर फूट-फूट कर रो पड़ी।

इतना रोई कि उसकी हिचकियां बंध गई और उल्टियां होने लगी। वो डर गई कि अब उसे बहुत डांट पड़ेगी, पर उस नौकरानी ने, जिसे अब वो दाई मां कहने लगी थी, बड़े प्यार से उसे नहलाया, धुलाया और पाउडर लगाकर बिस्तर पर लेटा दिया। उसने हजारों बार दाई मां से पूछा कि उसकी मां उसे छोड़कर क्यों चली गई, वो तो उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी। हर बार जवाब दाई मां के बहते आंसुओं ने ही दिया। धीरे-धीरे उसने परिस्थितियों के साथ समझौता कर मां के बारे में पूछना ही छोड़ दिया। उसे इस बात पर हमेशा आश्चर्य होता कि उसके पापा ने न तो कभी उसकी मां को ढूंढने की कोशिश की और न ही कभी नाम लिया। जब वह थोड़ी समझदार हुई तो एक दिन अचानक दाई मां के पैरों में अपना सर पटकने लगी। दाई मां की ये देखकर रुलाई फूट पड़ी और वह बोली, ‘हमार पांव छूके काहे हमें नरक के द्वारे पहुंचा रही हो बिटिया।

वह उनसे विनती करते हुए बोली, ‘मैं पागल हो जाऊंगी दाई मां, मुझे बस एक बार बता दो कि मेरी मां तो मुझे इतना ह्रश्वयार करती थी, फिर भला वो मुझसे बिना कुछ कहे सुने अचानक छोड़कर क्यों चली गई? मैं न तो कभी किसी से शादी कर पाऊंगी और न ही कभी अपने बच्चों को ममता दे सकूंगी। आंसू पोंछते हुए रितु बोली, ‘बचपन का ज़ख्म अब नासूर बनता जा रहा है दाई मां… तुम मुझे जल्दी किसी पागलखाने में देखोगी।’

हिचकियां लेते हुए उसने उनके कंधे पर अपना सर रखा तो दाई मां बोली, ‘हम तोहसे वादा करत हैं, जिनहि दिन तुम डॉक्टरी की परीक्षा में पास हो जाओगी, उ दिन हम तोहके वो कारण बता देब। पर ऊके पहले हमसे कुछ नहीं पूछना…’ और ये कहकर वो रोते हुए वहां से चली गई।

अब बस रितु के पास अपने जीवन का एक ही मकसद बचा था एमबीबीएस करना और अपनी मां के बारे में जानना, उसका बचपन कब लुकाछिपी खेलते हुए जवानी को ढूंढकर ले आया वो जान ही नहीं सकी।

उसकी सुंदरता और सादगी देखकर कई लड़कों ने उसके पास आने की नाकाम कोशिश की, पर उस पर तो जैसे जुनून था, अपनी मां को जानने का, पता करने का, इसलिए किसी की तरफ आंख उठकर भी नहीं देख सकी। उसे मन ही मन इन नादान लड़कों की सोच पर हंसी आती और वह सोचती कि किसी को अपना दर्द बताए भी तो क्या बताए। वे ज़ख्म जिनसे रिसता खून केवल वही देख पा रही थी, उसका इलाज क्या उनमें से कोई भी कर सकता है।’

लोग सोचते कि कमिश्नर की इकलौती लखपति बेटी है जिसका गुरूर उसे सबसे बात करने से रोक रहा है। वे बेचारे ये नहीं जानते थे कि उसके घर में झाडू पोंछा करने वाली काम वाली बाई भी जब अपनी आठ साल की बेटी को लेकर आती, और अपनी बेटी को प्यार भरी नज़रों से दुलारती तो वो खुद को कितना दीनहीन महसूस करती। अचानक बाहर के दरवाज़े की घंटी बजी और उसने घड़ी पर नज़र डाली। सुबह के पांच बजने वाले थे। आज वादे के मुताबिक दाई मां को भी आना था, आखिर उसने उनकी शर्त भी तो पूरी कर दी थी। पापा हमेशा की तरह घर आकर अपने कमरे की तरफ चुपचाप चले गए।

उसने सोचा कि किसी दिन अगर उसकी जगह कोई चोर घर में घुस आए और दरवाजा खोले तो भी पापा को ये समझ में नहीं आएगा कि दरवाजा किसने खोला क्योंकि उन्होंने तो कभी ये देखा ही नहीं। खैर अब सिर्फ दो घंटे बाकी थे, दाई मां के आने में… बेचैनी कम करने के लिए वो चाय बनाकर पीने लगी। थोड़ी देर बाद जब वह पापा के साथ लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रही थी तो अचानक वहां दाई मां आ गई और पापा को नमस्ते किये बगैर ही उन्होंने उसकी ओर देखा। पापा भी उनको देखकर अपना सर पेपर में छुपा पढऩे का उपक्रम करने लगे। ये देखकर दाई मां बोली, ‘साब, पूरा जीवन तो आप उलटा ही जिए, अब पेपर भी उलटा पढऩे लगे। सुनकर पापा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा और मुझे भी जैसे काठ मार गया। सारी जिंदगी मुंह सिलकर काम करने वाली दाई मां को आज क्या हो गया था।

मैंने चीखते हुए कहा, ‘आपको कोई हक नहीं है, पापा से बद्तमीजी से बात करने का, पर दाई मां एक फीकी मुस्कान के साथ बोली, ‘बिट्टु, जो हम बताने जा रहे हैं, ऊके बाद तो तुम इस मानुस से कभी बात ही नहीं करोगी। पापा का चेहरा ये सुनकर जैसे पीला पड़ गया और वह कुछ कहते इससे पहले ही दाई मां बोली, ‘तोहार मां तो तोहको जनम देते ही मर गई थी, तुम जिनको अपनी मां समझी वो तोहार सौतेली मां थी, पर ई पिसाच को तुमसे उसका दुलार सहन नहीं हुआ… जलन हो गई… ये दुनिया का पहला ऐसा बाप होगा जो ई बात से नफरत करे कि इसकी बेटी इससे ज्यादा उस औरत से प्यार करती थी जो उसकी सौतेली मां थी। इसको बेटा चाहिए था पर उस देवी जैसी औरत ने साफ मना कर दिया था ताकि तोहार हिस्से का प्यार और दुलार कहीं बंट ना जाए।

रितु के पैर ये नंगी सच्चाई सुनकर कांपने लगे और उसकी आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया। वो कुछ कहना चाह रही थी परन्तु शब्द उसके गले में फंस गए थे। दाई मां अपनी रुलाई रोकते हुए बोली, ‘और फिर तोहरे स्कूल जाने के बाद इसने जूते लातों से मारते हुए गर्म सरिये से दागकर उसे इस घर से हमेशा के लिए निकाल दिया। वो इसके पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाती रही कि आखरी बार तुझसे मिलने के बाद कभी नहीं आएगी… पर ई राच्छस ने ऊसे कहा कि अगर उसने अपनी मनहूस शक्ल तुझे दिखाई तो ये तुझे जान से मार देगा। घृणा और शर्म की शक्ल में रितु के बहते आंसू उसकी गर्दन को भिगो रहे थे। उसकी इच्छा हुई कि वो उस ज़ुबान को उतने घाव दे, जितनी बार उसकी ज़ुबान ने इस आदमी को पापा कहा है, पर नफरत शब्दों पर इतनी भारी पड़ गई कि उसे एक शब्द भी बोलना गंवारा नहीं हुआ। वो भर्राए गले से सिर्फ इतना ही कह सकी, ‘चलो दाई मां, मैं अपने पिता का श्राद्ध करने के बाद अपनी मां के पास जाकर रहूंगी। और वो दाई मां का हाथ पकड़कर चल दी, अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए। 

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