22nd August 2020
अगर बचपन से ही इस भावना को कंट्रोल न किया जाय तो ये आगे चलकर उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है.आईए जानें ऐसी कुछ पेरेंटिंग मिस्टेक्स जिनकी वजह से ये भावना उत्पन्न होती है-
ईर्ष्या एक ऐसा भाव है जो किसी भी इंसान के अंदर बहुत जल्दी घर कर जाता है.बच्चे के अंदर भी यह भावना,अपने सहोदर,मित्र,क्लासमेट के प्रति हो सकती है.एक सामान्य सी वजह जैसे ,अगर उसके दोस्त के पास नयी सायकल है तो उसे इस बात से जलन हो सकती है.कि सायकल उसके पास क्यों नहीं है या हर समय उसके भाई की प्रशंसा होती रहती है और उसकी नहीं होती तो उसे अपने भाई से ईर्ष्या हो सकती है.अगर बचपन से ही इस भावना को कंट्रोल न किया जाय तो ये आगे चलकर उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है.आईए जानें ऐसी कुछ पेरेंटिंग मिस्टेक्स जिनकी वजह से ये भावना उत्पन्न होती है-
1-बच्चों को बिगाड़ना-अगर आप बच्चे को ज़रूरत से ज़्यादा दुलार करते हैं तो वे ज़िद्दी स्वभाव के हो जाते हैं.यदि घर में कोई नया मेहमान आ गया या उसका छोटा भाई या बहन आ गया तो ऐसे बच्चे ख़ुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैंयहाँ तक की कभी कभी अवसाद से भी घिर जाते हैं.
2-ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षा-माता पिता जब अपने बच्चे की ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षा प्रदान करते हैं तो ये बच्चे के लिए नुक़सानदेह साबित हो सकता है. क्योंकि जब ये बच्चे अपने सामने किसी कॉन्फ़िडेंट बच्चे को देखते हैं तो अपने आप को कमज़ोर महसूस करने लगते हैं.
3-ज़रूरत से ज़्यादा सख़्ती करने वाले पेरेंट-बात बात पर डाँटना,बच्चे को कंट्रोल करने से भी बच्चे के अंदर ईर्ष्या की भावना जन्म लेने लगती है.उन्हें अपना बचपन छिनता हुआ सा फ़ील होता ,नतीजन वो अपने सिब्लिंग्ज़ से ख़ुद को कमतर आँकते हैं. जिससे उनके स्वभाव में ईर्ष्या की भावना का प्रादुर्भाव होने लगता है
4-दूसरों से तुलना-यदि माता पिता जाने अनजाने अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से करते हैं तो समान्यत: जो बच्चा उनकी नज़र में कमतर होता है उसके अंदर ईर्ष्या स्वाभाविक रूप से जन्म लेने लगती है .अन्हेल्दी कॉम्पटिशन भी उसके अंदर ईर्ष्या की भावना को जन्म देता है.
5-बर्थ क्रम-बच्चों के जन्म के क्रम पर भी ये प्रभाव पड़ता है.कभी माता पिता बड़े बच्चे से ज़्यादा अपेक्षा करते हैं तो कभी छोटे से उम्मीद करते हैं.अक्सर दूसरे बच्चे के जन्म के बाद बड़ा बच्चा ख़ुद को निग्लेक्टेड फ़ील करने लगता है.ऐसे में अपने छोटे भाई या बहन के प्रति उसमें ईर्ष्या की भावना जन्म लेने लगती है.
6-परिस्थितियाँ-कभी कभी परिस्थिति वश भी माता पिता एक बच्चे को अधिक लाड़ और दूसरे को कम दुलार देते हैं.मैं एक ऐसे दम्पत्ति को जानती हूँ जिन्हें अपने दूसरे बच्चे के जन्म के बाद ऐसी आर्थिक परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा कि वो उस बच्चे की परवरिश भली प्रकार से कर ही नहीं पाए. बच्चा जैसे तैसे पड़ोसी की छत्र छाया में ही पला.वयस्क होने के बाद , आज भी वो बच्चा अपने बड़े भाई को देखकर ईर्ष्या की अग्नि में दग्ध हो उठता है.
,7-रूपरंग,व्यक्तित्व--यदि किसी बच्चे का रूप रंग या व्यक्तित्व अपने भाई /बहन से उन्नीस हो(इस विषय को लेकर 'मेरी सूरत तेरी आँखें पिक्चर भी बनी थी) तभी भी वो उसके प्रति ईर्ष्यालु हो उठता है
हालात चाहे जो भी रहे हों माता पिता को चाहिए कि बच्चे में ईर्ष्या कर भावना पनपने ही न दें,क्योंकि यही वो दुर्भावना है जो ,न जाने कितने रिश्ते बिगाड़ देती है,न जाने कितने परिवारों की ख़ुशियाँ उजाड़ देती है.
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