23rd August 2020
ये सब हासिल करने के लिए ,जितना प्रयास माता पिता करते हैं.उतना ही परिश्रम उनका बेटा भी करता है.एक बार बेटे के सेटल हो जाने के बाद,युद्धस्तर पर शुरू होती है खोज एक सुंदर,सुशिक्षित,और संस्कारी बहू की जो उनके बेटे के साथ साथ उनके घर को भी स्वर्ग बना दे.
किसी भी परिवार में जब बेटा जन्म लेता है तो , बधाइयां गाइ जाती हैं,मिठाईयाँ बाँटी जाती हैं,देश -परदेस से लोग मुबारकबाद देते हैं कि,"ख़ानदान का चिराग़ आया है" ,जन्म से लेकर उसकी परवरिश विशेष रूप से की जाती है. सीमित साधन होते हुए भी माँ बाप(विशेष रूप से माँ)उसे अच्छे से अच्छा खाने ,पहनने ,को देते हैं,स्कूल से लेकर कालेज तक जितना बन पड़ता है,उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा देते हैं. सपने संजोते हैं कि,उनका लाड़ला इंजिनियर ,डॉक्टर ,आई ए एस बनेगा,जिससे वो समाज में गर्वोन्नत होकर सबको दिखा सकें,कि "बेटा हो तो ऐसा"।
ये सब हासिल करने के लिए ,जितना प्रयास माता पिता करते हैं.उतना ही परिश्रम उनका बेटा भी करता है.एक बार बेटे के सेटल हो जाने के बाद,युद्धस्तर पर शुरू होती है खोज एक सुंदर,सुशिक्षित,और संस्कारी बहू की जो उनके बेटे के साथ साथ उनके घर को भी स्वर्ग बना दे.(प्रेम विवाह है तो ,बात अलग है) और फिर ,बहू के घर में क़दम रखते ही शुरू हो जाता है उम्मीदों आशाओं का दौर,जिसमें कभी बहू खरी उतरती है तो कभी बेटा और कभी कभी तो दोनों ही माता पिता की उम्मीदों पर तुषारापात करते हुए नज़र आते हैं.
प्रश्न उठता है जो बेटा ,विवाह पूर्व आँख का तारा था,ब्याह के अगले दिन से ही आँख की किरकिरी क्यों बन जाता है. उसकी छोटी से छोटी ग़लती को इतना विकराल रूप क्यों दे दिया जाता है?
"बहू ने उनके बेटे को उनसे छीन लिया ,"जैसे तानों तिशनों से वातावरण क्यों गदला हो जाता है. बेटा सफ़ाई दे तो "जोरू का ग़ुलाम "और चुप्पी साधे रहे तो,"मुँह में ज़ुबान नहीं है क्या?"
बहू जवाब दे तो माँ बाप ने तमीज़ नहीं सिखाईं ,और कुछ न कहे तो "मुँह में दही जमा रखा है क्या?" और फिर रोना ,धोना, हाथ पैर पटकना,कभी ख़ुद घर छोड़ने की धमकी ,कभी बहू बेटे को घर से निकालने की पेशकश.विरले ही परिवार होंगे जहाँ,बेटे के विवाह के बाद वातावरण,शांत और सुखद होगा.
आइए देखें क्यों होती हैं ऐसी बातें घर परिवारों में?
1- दरअसल आसपड़ोस के कुछ कड़वे कसैले उदाहरण ,सास ससुर के अंत:स्थल पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं कि उनके साथ वैसी कोई बात चाहे न भी हो,मन हर समय दुविधाग्रस्त रहता है कि ग़लत ही होगा.कुछ तो वृद्धाश्रम में अपना आरक्षण पहले ही करवा लेते हैं.
2-एक माँ अपने बेटे से चाहती है किउसका बेटा उसका सम्मान करे .उसकी आज्ञा का पालन करे,हो सकता है,बेटा शादी के बाद उतना प्यार न करे जितना पहले करता था क्योंकि,शादी के बाद उसका प्यार पत्नी और माता पिता के बीच बँट भी तो जाता है.नकारात्मक सोच को ताक पर रखकर धीरज रखें .आपका बेटा,आपका ही है .उसे आपसे कोई नहीं छीनेगा,बशर्ते आप,जितना प्यार अपने बेटे को देती है,उतना ही बहू को भी दें.
3-यदि बहू में कुछ कमी है तो उसे बेटी समझकर समझाने की कोशिश करें.कुछ ग़लत दिखे तो बेटे के बजाय बहू का पक्ष लें,क्योंकि आपकी बहू अपने माता-पिता का घर छोड़ कर आयी है.उसे अकेलेपन का अहसास कदापि न होने दें, यदि बहू वर्किंग है तो अपनी अपेक्षाएँ सीमित रखें.जिस तरह अपने बेटे की मदद करती हैं,बहू की भी करए. उसे अच्छा लगेगा.ये सच है कि,उम्र बढ़ने के साथ साथ शरीर में उतनी क्षमता नहीं रहती है,लेकिन निश्चिन्त रहिए.समय आने पर यही बच्चे आपके बुढ़ापे की लाठी बनेंगे.
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