2nd November 2020
यूं तो पूजा मन की आस्था का भाव है, उसके लिए किसी सामग्री विशेष की नहीं श्रद्धा की जरूरत होती है, फिर भी व्यावहारिक तौर पर यदि किसी पूजा को पूर्ण, सही व संपन्न करने या कहें तो वह पूजा बिना पूजन सामग्री के अधूरी कहलाती है। कौन सी हैं पूजन की वह सामग्रियां तथा क्या है उसका महत्त्व? जानिए इस लेख से।
यू तो पूजा चुपचाप, अकेले किसी कोने में बैठकर भी की जा सकती है उसके लिए किसी ढोल-मंजीरे या धूप-दीपक की आवश्यकता नहीं होती। यदि एक ओर यह बात सत्य है तो दूसरी बात बिना पूजन सामग्री के पूजा अधूरी होती है यह बात भी उतनी ही सही है। पूजा में पूजन सामग्री कोई औपचारिक नहीं बल्कि भक्त का अपने प्रभु के प्रति प्रेम का भाव समर्पित करने का एक ढंग होता है, जिसमें पूजन की हर सामग्री का एक प्रतीकात्मक ढंग होता है, उसका धार्मिक, आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार होता है। पूजन की सभी सामग्री भक्त का अपना अहोभाव प्रकट करती है। जिस तरह हम अपने प्रेमी से जब मिलने जाते हैं तो उसके लिए हम तमाम तरह के उपहार जैसे- फल, फूल, मिष्ठान या कोई कपड़ा वस्तु आदि लेकर जाते हैं कि उसे अच्छा लगेगा, उसी तरह हम भगवान की पूजा अर्चना करते हैं तो न केवल हम उनको उपहार आदि चढ़ाते हैं बल्कि उनका साज श्रृंगार भी करते हैं। जैसे- हम अपने प्रेमी को रिझाने व मनाने के लिए कभी गाकर तो कभी नाचकर करते हैं। वैसे ही हम प्रभु के सामने पूजा के दौरान भजन, कीर्तन, ढोल-मंजीरे आदि से उन्हें मनाते व रिझाते हैं। उसी मस्ती में हम गाते-झूमते भी हैं, कभी उन्हें माला पहनाते हैं तो कभी शीश नवाते हैं। इतना ही नहीं उसे सुस्वादु से सुस्वादु भोजन, मिठाई या प्रसाद का भोग भी लगाते हैं। प्रभु के प्रति भक्ति का यही भाव है जिसके कारण भक्त पूजा में प्रतीक के रूप में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करता है।
यूं तो हर देवी-देवता तथा त्योहार एवं अवसर अनुसार पूजा में सामग्री का कम ज्यादा या भिन्न होना हो सकता है, लेकिन सामग्री जो अमूमन हर पूजा में विशेष व जरूरी होती है वह है- फल, फूल, दीप, धूप, कपूर, कलश, नारियल, सिंदूर, कुमकुम, चंदन, चावल, इन सभी सामग्रियों का पूजा में विशेष महत्त्व है। धूप अगरबत्ती धूप एवं अगरबत्ती जहां एक ओर वातावरण को सुगंधित बनाती है वहीं उसकी गंध मन को एकाग्र करने का भी काम करती है। धूपबत्ती या अगरबत्ती का जलना स्वयं की कमियों एवं बुराइयों को जलाकर सुगंध यानी गुणों को उपलब्ध होने का प्रतीक भी है। कुमकुम-चंदन एक ओर कुमकुम एवं चंदन से देवी-देवता का केवल तिलक किया जाता है बल्कि इस चंदन के तिलक द्वारा भक्त स्वयं को शीतल व शांत भी पाता है। चंदन में प्राकृतिक सुगंध और शीतलता प्रदान करने के गुण होते हैं जो घिसने के बाद ही प्रकट होते हैं। भक्त भी समर्पण के बाद ही निखरता व परिवर्तित होता है।
फूल- फूल जितना कोमल होता है उतना ही सुगंधित भी। जितना सुंदर होता है उतना ही पावन भी। इसीलिए इसके द्वारा न केवल भगवान का श्रृंगार होता है, बल्कि इसे उनके गले एवं चरणों में भी चढ़ाया जाता है। फूल डाल से जुड़ा होकर भी खिलता और महकना नहीं छोड़ता। भक्त भी मोह-माया से जुड़ा होकर हर परिस्थिति में खिलने और महकने की कामना करता है।
दीपक- दीपक केवल प्रकाश या रोशनी का ही नहीं ज्ञान का भी प्रतीक है। जिस तरह दीपक की रोशनी अंधकार को मिटाती है वैसे ही ज्ञान रूपी प्रकाश अज्ञानता का अंधकार भी मिट जाता है। इतना ही नहीं दीपक की लौ सदा ऊपर उठती है जो सदा प्रयत्नशील होने एवं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। भक्त भगवान के आगे प्रकाश कर अपने जीवन में प्रकाश की उम्मीद जगाता है। इतना ही नहीं बाती और तेल का संबंध आत्मा से परमात्मा के संबंध की ओर भी इशारा करता है।
मिष्ठान- मिष्ठान किसी भी रूप में हो लड्डू-बर्फी या बूंदी-बताशे के, जिसे हम प्रेम कहते हैं या जिसके प्रति हम कृतज्ञ होते हैं सदा उसको हम मीठा खिलाकर उसके प्रति अपना प्रेम व धन्यवाद प्रकट करते हैं। पूजा में मिठाई का होना इसी भावना को दर्शाता है। साथ ही भक्त कामना करता है कि उसके जीवन में कर्म और कृत्यों में, वचन और वाणी में इसी तरह की मिठास का प्रादुर्भाव हो।
कलश- कलश के विशिष्ट आकार के कारण उसके रिक्त स्थान में एक विशिष्ट एवं सूक्ष्म नाद पैदा होता है। इन सूक्ष्म नाद के कंपन से ब्रह्मïांड का शिव तत्व कलश की ओर आकृष्ट होता है, जिससे भक्त को शिव तत्व का लाभ मिलता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि इसके जल व तरंगों में सभी देवताओं का वास होता है। जिस तरह जल का स्वभाव निर्मल, कोमल, लचीला और ठंडा होता है वैसे ही गुणों की कामना भक्त अपने जीवन में करता है ताकि वह स्वयं से हर स्थिति परिस्थिति में कोमलता से ढाल ले।
नारियल- नारियल ऊपर से जितना कठोर और काला होता है अंदर से वह उतना ही मुलायम व सफेद होता है। नारियल को पूजा में रखना एवं तोड़ना अपने अहंकार को त्यागने का परिचायक है। नारियल के बाल हों या खोल, गरी हो या पानी सभी का उपयोग होता है, जिसमें कई औषधीय गुण भी छिपे होते हैं।
जल- पूजा में जल का विशेष महत्व है। यूं तो पूजा में गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी एवं नर्मदा सात नदियों के पानी को मिलाकर कलश के द्वारा देवताओं की मूर्तियों का अभिषेक करने का चलन है, जिसका उद्देश्य न केवल मूर्तियों को स्नान कराना है बल्कि उन देवताओं एवं योगियों का आशीर्वाद पाना भी है, जिन्होंने इन पावन नदियों के तटों पर तपस्या भी की थी।
सुपारी व पान- पूजन सामग्री में सुपारी का भी विशेष स्थान है। जल में सुपारी डालने से सुपारी द्वारा उत्पन्न तरंगों द्वारा जल सत्व-रजोगुणी बनता है। इससे देवता के सगुण तत्व को ग्रहण करने की जल की क्षमता बढ़ती है। पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल- को भूलोक व ब्रह्मलोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों और ब्रह्मï तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। नागबेल अत्यधिक सात्विक होती है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।
तुलसी- पूजन की थाल में तुलसी का बड़ा महत्त्व है। अध्यात्म व आयुर्वेद में तुलसी का महत्त्व सबको मालूम है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में रखे जल को तुलसी में डालने से तुलसी जल के साथ देवता के तत्व को भी सोख लेती है। तुलसी अपनी सात्विकता के साथ देवता के चैतन्य को भी वातावरण में भेजती है।
हल्दी-कुमकुम- हल्दी धरती के नीचे उगती है, इसलिए धरती पर उगने वाली वस्तुओं की अपेक्षा हल्दी में भूमि तरंगों का प्रमाण बहुत अधिक होता है। कुमकुम हल्दी से ही बनाया जाता है। देवता को
हल्दी- कुमकुम चढ़ाने से सकारात्मक ऊर्जा के साथ हल्दी-कुमकुम में विद्यमान भूमि तरंगों का लाभ भक्त को मिलता है, जिससे भक्त की सात्विकता में वृद्धि होती है।
अक्षत और खील- अक्षत में श्री गणेश, श्री दुर्गा देवी, श्री शिव, श्री राम, श्री कृष्ण के तत्वों की तरंगों को आकृष्ट करने, जागृत करने तथा कार्यरत करने की क्षमता होती है। इसलिए पूजा विधि में देवता की मूर्ति पर अक्षत छिड़ककर सब में विद्यमान देवत्व को जागृत कर उनका कार्य की सिद्धि के लिए आह्वान करते हैं।
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