14th January 2021
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह जरूरी है कि महिलाएं उनकी सुरक्षा के लिए निर्धारित कानूनों के बारे में जागरूक हों।
समाज या संस्कृति के बारे में समझने का सबसे अच्छा तरीका यह जानना है कि हमारी महिलाओं की क्या स्थिति है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह जरूरी है कि महिलाएं उनकी सुरक्षा के लिए निर्धारित कानूनों के बारे में जागरूक हों। हमने अपनी महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारियां संभालने के साथ साथ विमानन, सशस्त्र बलों, आईटी, राजनीति और उन अन्य क्षेत्रों में पहचान बनाते देखा है, जिनमें पहले पुरुषों का दबदबा हुआ करता था। भारत में महिलाओं के मानवाधिकारों की बात की जाए तो पता चलता है कि सिद्धांत और व्यवहार के बीच बड़ी खाई मौजूद है। भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है, जिसमें पुरुषों को हमेशा श्रेष्ठ समझा जाता रहा है। भारत में महिलाओं को अक्सर भेदभाव, अन्याय और अपमान का सामना करना पड़ता है। भले ही भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा अधिकार दिए गए हैं, लेकिन फिर भी देश में महिलाओं की स्थिति दु:खद है। हमारे देश में महिलाओं को अपना हक पाने के लिए कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
महिलाओं को यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि उनके अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भी विभिन्न कानूनों का निर्माण एवं संशोधन किया गया है।
यह एक ऐसा नागरिक कानून है, जो घरों में हिंसक पुरुषों के खिलाफ महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है। यह कानून न सिर्फ उन महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, जिन्होंने पुरुश से शादी की है, बल्कि उन महिलाओं को भी सुरक्षा देता है, जो लिव-इन रिलेशन के साथ-साथ पारिवारिक सदस्यों के साथ रहती हैं, जिनमें मां, दादी मां आदि शामिल हैं। इस कानून के तहत, महिलाएं घरेलू हिंसा, वित्तीय क्षतिपूर्ति, अपने सामूहिक घर में रहने के अधिकार को लेकर सुरक्षा मांग सकती हैं और वे अलग रहने की स्थिति में अपने अलग हो चुके पति से मैंटेनेंस यानी जीवन निर्वाह के लिए रकम मांग सकती हैं।
कार्य के लिए सुरक्षित स्थान हरेक महिला का अधिकार है। न्यायालय कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को मानवाधिकार उल्लंघन समझते हैं। कई मामलों में महिलाएं बदले के डर, अपनी नौकरी खोने या पेशेवर छवि खराब होने के भय से संबद्ध अधिकारियों के पास अपने मामले नहीं उठा पाती हैं। इस अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन लिंग समानता, जीवन और स्वायत्तता, हर जगह कामकाजी हालात में समानता का अधिकार दिलाएगा। कार्य स्थल पर सुरक्षा की भावना से कार्य में महिलाओं की भागीदारी में सुधार आएगा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आर्थिक वृद्धि और सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 ने कानूनी संस्था के तौर पर राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की थी। इस आयोग का गठन 31 जनवरी 1992 को हुआ था। इस आयोग का एकमात्र उद्देश्य है-
अपने स्वर्गीय पिता की पैतृक संपत्ति की समान भागीदारी से वंचित बहनों के लिए अब अपना बकाये का दावा करने का अधिकार होगा। काफी विचार-विमर्श के बाद 2005 में लॉ कमीशन को लागू किया गया था और 1956 के कानून में संशोधन को स्वीकार किया गया था, जिसमें कहा गया कि महिला जन्म से ही बेटे की तरह समान उत्तराधिकारी (अविभाजित संपत्ति में विरासत साझा करने) हो सकती है। यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि संपत्ति पर समान अधिकार पुरुषों के साथ महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने और उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक प्रमुख कारक है।
सामान्य तौर पर हमारे देश के पिछड़े इलाकों में लड़कियों को काफी कम उम्र में विवाह के लिए बाध्य किया जाता है। बाल विवाह भारतीय संस्कृति और परंपरा में गहराई से जुड़ा हुआ है और इस समस्या को दूर करना मुश्किल हो गया है। यह अधिनियम उन शादियों की अनुमति नहीं देता है जिनमें दूल्हा 21 साल से कम और दुल्हन 18 साल से कम उम्र की हो। कम उम्र में लड़कियों की शादी करने की कोशिश करने वाले माता-पिता को इस अधिनियम के तहत सजा का प्रावधान है।
1972 में, मेडिकल टॢमनेशन ऐक्ट प्रभाव में आया और 1975 तथा 2002 में इसमें संशोधन किए गए। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को गैर-कानूनी जबरन गर्भपात और उसके परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु तथा रुग्णता की दर कम करके महिलाओं की सुरक्षा करना है। अधिनियम में उन परिस्थितियों को स्पष्ट किया गया है, जिनमें गर्भावस्था समाप्त की जा सकती है और उस व्यक्ति की स्थिति को भी निर्दिष्ट किया गया है, जो ऐसा करा सकता है।
यह विशिष्ट अधिनियम पुरुष और महिला श्रमिकों को बगैर किसी भेदभाव के समान पारिश्रमिक हासिल करने में सक्षम बनाता है। समान भुगतान हरेक कर्मचारी का अधिकार है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। सभी महिलाओं को अपने हितों को सुरक्षित बनाने के प्रयास में ऐसे कानूनों की जानकारी होनी चाहिए। जो लोग अपने अधिकारों से अवगत हैं, वे किसी अन्याय के खिलाफ स्वयं को सुरक्षित बना सकते हैं।
इस अधिनियम के अनुसार, विवाह के समय दहेज लेना या देना अवैध माना गया है। 'दहेजÓ का मतलब किसी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा राशि है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी जाती है। जब लड़की के परिवार वालों द्वारा शादी के बाद भी दहेज के लिए मांग पूरी नहीं की जाती है तो कई महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, पीटा जाता है और जला दिया जाता है। यह उन मुख्य चुनौतियों में से एक है जिनसे मौजूदा समय में हमारा समाज लड़ रहा है।
यह अधिनियम महिलाओं को मातृत्व लाभ प्रदान कराता है, जिनका जिक्र रोजगार के तहत नियमों में शामिल होता है। किसी खास संगठन में कम से कम 3 महीने तक शामिल हरेक कामकाजी महिला मातृत्व लाभ की हकदार होती है, जिसमें पेड मैटरनिटी लीव और अन्य मातृत्व संबंधी लाभ मिलते हैं। इसके अलावा 50 कर्मचारियों से ज्यादा वाली कंपनियों द्वारा डे केयर सेवाएं भी मुहैया कराने की जरूरत होती है।
इसके बारे में स्वतंत्र रूप से शिकायत करने वाली महिलाओं से अन्य लोगों को भी उत्साह दिखाने की प्रेरणा मिलती है। यह अधिनियम प्रोत्साहन सामग्री या प्रकाशनों, लेखनों, पेंटिंग, आंकड़ों या किसी अन्य तरीके के जरिये महिलाओं की गलत छवि को निषेध करता है।
यह लंबे समय से देखा गया है कि सामान्य तौर पर पुरुष अपने माता-पिता या पैतृक संपत्ति के हकदार होते हैं और महिलाओं को इसका सीमित अवसर मिलता है। भले ही हमारे देश में महिलाओं को वसीयत में समान अधिकार दिलाने के लिए 2005 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया, लेकिन अब वसीयत की परंपरा कायम नहीं रह गई है।
तुरंत तलाक या 'ट्रिपल तलाक' या 'तलाक-ए-बिदात' इस्लामिक प्रथा है, जो पुरुषों को तीन बार 'तलाक' शब्द बोलकर अपनी पत्नियों से तुरंत संबंध समाप्त करने की अनुमति देती है। ट्रिपल तलाक बिल के नाम से चर्चित इस विधेयक में तलाक की सभी घोषणाओं (जिनमें लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में समेत) को अवैध माना जाएगा। ट्रिपल तलाक बिल तलाक की घोषणा को दंडनीय अपराध करार देता है, और इसके लिए जुर्माने के साथ तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। इस विधेयक का प्रस्ताव 2018 में लोकसभा में रखा गया था और अभी भी इसे राज्य सभा से मंजूरी मिलनी बाकी है।
वर्ष 2013 के बाद, क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऐक्ट और पॉश ऐक्ट की घोषणा के तहत महिलाओं के कल्याण, सुरक्षा और लाभ के लिए इस कानून में कई बदलाव किए गए। इसका मुख्य मकसद लिंग-आधारित भेदभाव, गरीबी, कन्या भ्रूण हत्या, यौन उत्पीड़न, शिक्षा, रोजगार कौशल प्रशिक्षण की कमी जैसी सामान्य बुराइयों को दूर करना है। जैसा कि हमने देखा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई कोशिशें की हैं और कुछ मामलों में सरकार को भी निर्देश जारी किए गए, लेकिन इन कानूनों का व्यावहारिक तरीके से क्रियान्वयन महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
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