संसार में सुख सचमुच नहीं है, पर है भी। नहीं भी और है भी कैसे? जब जब किसी वस्तु के लिए मन में ख्याल उठा, यूं समझो मन में ख्याल उठा कि फलां विषय मुझे प्राप्त हो जाए, मन हो गया बेचैन। अब दौड़-भाग हो रही है फिर जो चीज चाहता था उसको मिल गई, जब मिली तो वो जो चंचल हुआ मन था, वह ठहर गया। 

कौन है मन के पास? कौन है मन के पास? मैं हूं। सत्त स्वरूप, चेतन स्वरूप, आनंद स्वरूप, मन के पास कौन है? ‘मैं’। मेरा ही प्रतिबिंब मन में छलका। मेरा ही प्रतिबिंब मन में छलका पर भ्रम हुआ कि बाहर से था। भ्रम हुआ कि बाहर से मिला। जैसे, बड़ा दिल किया कि आज तो जाकर चांदनी चौक की चाट खाएं। क्यों? उसकी बड़ी स्वाद होती है, हल्दीराम भुजिये वाले की बड़ी स्वाद होती है। तो गाड़ी में बैठे फैमिली को लिया साथ में पहुंचे वहां पर, ओ भइया! चाट देना। और सामने दही, खट्ïटी चटनी गुड़ वाली, मिट्ïठी चटनी, पकौड़ी डाली, नमक डाला, मिर्ची डाली, मसाला डाला, चटनी डाली, लो बाऊजी! (किस-किसके मुंह में पानी आया?) अब जब पहला चम्मच मुंह में डाला तो, अहा! सुख आया कि नहीं? सुख आया कि नहीं? चाट खाई। चाट खाई सुख आया। और चाट खा रहे हैं सुख आ रहा है, अभी दूसरा चम्मच भरा कि पुलिस वाला आ गया, ‘एं गाड़ी यहां पर क्यों खड़ी की है? बेवकूफ हो, अंधे हो, दिखाई नहीं देता ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड लगा हुआ है।’ बात सुनते ही मन गया हिल। अब चाट पड़ी है हाथ में, ऐं फड़ नूं, मैं वेखा जरा ऐन्नूं पैल्ले। बात पकड़ रहे हो।

अगर चाट में सुख होता तो बना रहता। अब चाट पड़ी हाथ में, वो गया पुलिस के साथ चिकचिक करने, फिर चिकचिक में आकर उसने चालान काट दिया, गुस्से में आकर लाइसेंस छीन लिया, पांच सौ रुपये का जुर्माना कर दिया। बीवी के पास आया, ऐ लेयो चाट खा लो। हुण सिर विच पा चाट मेरे। कहा था घर में बैठ, चैन थोड़े ही न है, चाट खानी, चाट खानी! अब देख, पांच सौ रुपये का जुर्माना हो गया, लाइसेंस अलग से चला गया। चाट में सुख है?

अब समझो, काहे में सुख है? मन ने एक ख्याल उठाया कि चाट खाऊंगा तो मुझे सुख लगेगा। चाट खाऊंगा तो सुख लगेगा। मन हो रहा था बेचैन चंचल। चाट जब मिली तो मन टिक गया, मन टिक गया। मन के पास कौन है? मैं मन को कौन जानता है? मैं। मन को कौन देखता है? मैं। मेरा ही प्रतिबिंब उसमें आया। किसका प्रतिबिंब? मेरा ही, जब मेरा प्रतिबिंब सुख वाला हुआ तो फिर मैं कौन हुआ? सुख स्वरूप। कौन हुआ।

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