2nd March 2021
जीवन की आपाधापी में सीमा भूल सी गई थी खुद को। सुबह से कब शाम होती ,शाम से कब रात ,अपनी तमाम व्यस्तताओं में उसको पता ही न चलता , लेकिन जब घर में वो सुनतीं कि तुम्हें काम ही क्या है दिन भर घर में ही तो पड़ी रहती हो , इतना सुनते ही वह परेशान हो जाती और अपनी उपेक्षा से भीतर ही भीतर आहत हो जाती , बार-बार उसके मन में ख्याल आता कि वह भी बाहर जाकर नौकरी करना शुरू कर दे परन्तु घर की परिस्थितियों और जिम्मेदारियों ने उसके पैरों में बेड़ियां डाल रखी थी।
सीमा की सास उसकी तकलीफ़ को समझती थीं पर उसके लिए कुछ कर पाने में सक्षम न थीं ,बस इतना बोलतीं कि हर औरत की यही कहानी है फिर दोनों चुप हो जातीं, पर सीमा को इतने में ही संतोष हो जाता कि चलो कोई तो है जो समझ रहा है उसकी वेदना को, वह सब कुछ भूलकर अपने काम में लग जाती। भागती-दौड़ती जिंदगी में एक ओर जहां उसे सेल्फ डिपेंडेंट न होने का टीस था , वहीं दूसरी ओर पूरे परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने से सुकून मिलता था।
वैसे तो सीमा के पति सोमेश भी उसको बहुत प्रेम करते थे,पर जाने - अनजाने में ताने मारने से भी बाज नहीं आते थें, सीमा तुमसे तो घर के काम ही नहीं सिमटते , सफाई बरतन मेड कर जाती है फिर भी न जाने क्या करती रहती हो, वो रेखा भाभी जी को देखो नौकरी भी करती और घर भी अच्छे से मैनेज कर लेती है, ये बातें तीर की तरह सीमा के दिल में धंस जाती थीं , हालांकि इसके बाद सीमा सोमेश से नाराज़ हो जाती पर बोलती कुछ भी नहीं, बाद में माहौल देख कर सोमेश उसको मना लेता कहता मैं तो खुद भी नहीं चाहता कि तुम बाहर जाकर काम करो, लेकिन आए दिन ऐसी बातों से सीमा आहत होती रहती थी।
इन सबके बीच कोरोना की वजह से लाॅकडाउन लग गया,अब सीमा के ससुर जी और सोमेश दोनोें ने वर्क फ्राम होम शुरू कर दिया और बच्चे भी हरदम घर पर ही रहतें इस वजह से सीमा का काम और भी बढ़ गया,,मेड से थोड़ी सी जो हेल्प मिलती थी वो भी खत्म । सारा का सारा काम उसे अकेले संभालना पड़ता था, जिससे वह बहुत थक जाती थी । रोज सुबह 6:00 बजे उठने के बाद रात 12:00 बजे ही वह फ्री हो पाती। आखिरकार पूरे घर को अकेले संभालने वाली सीमा, न चाहते हुए भी बीमार हो गई, शुरू में कुछ दिन थकान होने पर वह स्वंय ही दवाई लेकर खा लेती और रोजाना की तरह अपने काम शुरू कर देती,,,, एक दिन रात को काम खत्म करने के बाद सोने आई तो सोमेश ने देखा उसका पूरा बदन तप रहा है,,,, दवा देने के बाद भी कोई राहत नहीं,,,, सभी घबरा गए,,,, डॅाक्टर को दिखाया गया , उन्होंने पूरी तरह से सीमा को रेस्ट करने की सलाह दी और हिदायत देते हुए कहा कि अगर थोड़ी सी लापरवाही हुई तो जान भी जा सकती है।
अब घर को कौन सभाले,,, बच्चे छोटे थें, मां की रीढ़ की हड्डी में परेशानी थी अतः वह भी कुछ खास कर नहीं पाती थीं झुकने की सख्त मनाही थी उनको फिर भी बहू बीमार थी तो खड़े होकर जो बन पड़ता था वो करती थीं, लेकिन इतने से तो घर का काम पूरा नहीं पड़ता , अब सारी जिम्मेदारी सोमेश के ऊपर आन पड़ी, सुबह उठता पापा जी और मम्मी को चाय देता, फिर नाश्ते की तैयारी ,लंच,डिनर और बीच में सौ काम अलग से करने पड़ते थे, इन सबके बीच ऑफिस के काम के लिए टाइम ही नहीं मिलता उसे , अस्तु आठ दिन की लीव ले ली, उसके बाद भी पूरा दिन लग जाता और सोमेश खीझ जाता था, हालांकि जब से सीमा बीमार हुई है तबसे न बच्चे कुछ अलग खाने की ज़िद करतें और न ही पापा जी बार-बार चाय की फरमाइश करते, फिर भी सोमेश बहुत थक जाता, इधर धीरे- धीरे सीमा ठीक होने लगी थी, वह सोमेश को काम करते हुए देखकर परेशान रहती थी, मन ही मन सोचती थी जल्दी ठीक हो जाऊं और काम संभालूं जिससे पति को थोड़ा आराम मिल सके।
सीमा ठीक तो हो रही थी पर पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी बावजूद इसके वह उस दिन जल्दी उठ गई और पहले की तरह सबके उठने से पहले नहा धो कर पूजा-अर्चना करने के बाद रसोई में गई सबके लिए चाय बनाकर मम्मी-पापा के कमरे में चाय लेकर गई उनके पैर छूए और चाय की द्रे साइड टेबल पर रख दिया , उसको देखते ही दोनों ने साथ ही कहा अरे!!! बेटा तुझे क्या जरूरत थी अभी उठने की,, पूरी तरह ठीक तो हो जाती , सीमा ने कहा मम्मी जी लेटे - लेटे भी थक गई थी मैं अब न उठती तो और बीमार हो जाती, वहां से अपनी और सोमेश की चाय लेकर अपने कमरे में गई, सोमेश को उठाया और चाय का प्याला हाथ में पकड़ाने लगी सोमेश ने सीमा के हाथ से चाय की कप लेकर टेबल पर रख दिया , उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर रूआंसा सा होकर कहने लगा तुम्हारे त्याग , समर्पण और 24×7 नाॅन स्टाॅप किए गए मेहनत का मैंने कभी कोई मूल्य न समझा इसलिए भगवान ने मुझे सीख दी है , तुम तो जब से आई हो मम्मी-पापा की सेवा बिना किसी शिकायत के करती रही और बच्चों में भी उचित संस्कार का बीजारोपण किया ये सब मैं भूल गया था, अपने काम और अपनी मेहनत को ही सर्वोपरि मानता रहा , मुझे क्षमा कर दो इन दस दिनों में मुझे आभास हो गया कि घरनी के बिना घर नहीं चल सकता हम दोनों दो पहिया हैं गाड़ी के, अगर एक पहिया डगमगा जाए तो पूरी गृहस्थी लड़खड़ा जाएगी,सीमा की आंखों से झरझर आंसू बह निकले, उसके आंसुओं को पोछते हुए सोमेश ने कहा पगली अब बस करो मुझे पता है मेरी नासमझी के कारण तुम बहुत रोई हो अब न रोने दूंगा तुम्हें अपनी ऊल-जलूल बातों से, सीमा सोमेश के गले लग गई और कहने लगी बस इसी प्रेम की तो दरकार थी मुझे, सोमेश ने सीमा का माथा चूम लिया।
इतने में सीमा को याद आया कि बात करते हुए बहुत देर हो गई नाश्ते का टाइम हो आया है वह हड़बड़ा कर उठी सोमेश ने कहा अब से हम दोनों मिलकर काम करेंगे, दोनोें हंसते हुए कमरे से बाहर आए देखा डाइनिंग टेबल पर पापाजी और मम्मी जी बैठे हैं, वह किचन की भागी, पापाजी ने आवाज दिया बेटा सीमा यहां आओ बैठो हमारे पास सोमेश को भी बैठने के लिए बोला, मम्मीजी ने कहा बेटा सोमेश जब से बहु आई है घर की सारी जिम्मेदारियों को ओढ़ लिया है कभी खुद की परवाह न की ,हम सबने भी कभी उसकी तरफ ध्यान न दिया,मैं भी यही करती आई थी और जब से बहु आई उसने भी वैसे ही किया, पर अब ऐसा न चलेगा इस प्रथा को खत्म करना ही पड़ेगा , घर के नियमों में बदलाव लाना बहुत जरूरी हो गया है, पापाजी ने कहा,' सोमेश क्या तुम्हें पता है तुम्हारे बच्चों की पढ़ाई कैसे चल रही है? हम दोनों की दवाइयां , डाॅक्टर और बाहर के दुनिया भर के काम कैसे मैनेज होते हैं?'
'नहीं पता न?'
सोमेश सिर झुका लेता है
मम्मी जी ने कहा,' अब से घर के काम तुम दोनों मिलजुलकर करोगे'।
सोमेश ने कहा,'जी मम्मी'।
पापा जी ने कहा ,'फिर जाओ हम सबका नाश्ता तुम बनाकर लाओ।'
सब एक-दूसरे को देखकर जोर से हंसने लग जाते हैं, सीमा मम्मी जी के गले लग जाती है । मम्मी जी भी उसके बालों में अंगुलियां फेरते हुए अपने सीने से लगा लेती हैं।
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