24th April 2021
गीता निष्काम कर्म का एक ऐसा दर्शन है जो प्रत्येक प्राणी व राष्ट्र की उन्नति का आधार है.
गीता निष्काम कर्म का एक ऐसा दर्शन है जो प्रत्येक प्राणी व राष्ट्र की उन्नति का आधार है। महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन प्रतिद्वंद्वी के रूप में अपने गुरु और भाइयों को युद्ध भूमि में देखकर व युद्ध के परिणामों का विचार करके उन्हें विषाद हो गया था और उन्होंने ,शस्त्र रख दिए थे, क्योंकि वो अपने कुतुम्ब के लोगों से युद्ध करना नहीं चाहते थे।
भगवान श्री कृष्ण निष्काम योगी,एक आदर्श दार्शनिक,स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उस समय श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि हे धनंजय,अपने मन पर नियंत्रण रखो,और,कर्म न करने का विचार त्याग दो यश, अपयश के विषय में न सोच कर अपने कर्म न करने का विचार त्याग दो...
(श्लोक -१२)जो लोग अपने मन पर नियंत्रण नहीं करते,उनका मन शत्रु की तरह काम करता है। जीवन में कोई भी काम करने से पहले खुद का आकलन करना बहुत जरूरी होता है, साथ ही अगर किसी काम को करते समय अनुशासित नहीं रहते, तो कोई काम ठीक से नहीं होता है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि शोक के हानिकारक प्रभाव है। कोई भी काम करने से पहले खुद पर विश्वास रखो, व्यक्ति अपने विश्वास से निर्मित होता है जो जैसा विश्वास करता है,वैसा ही बन जाता है।
कृष्ण कहते हैं हर काम के लिए अभ्यास जरूरीहै। अगर मन अशांत है तो उसे नियंत्रित करना कठिन होता है। लेकिन लगातार अभ्यास करके उसे वश में किया जा सकता है।
कभी भी क्रोध में कोई फैसला नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्रोध के आवेग में सही गलत के बीच मनुष्य कोई सही निर्णय नहीं ले पाता है।
"हे अर्जुन,मुझ में मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि को लगा(मन,बुद्धि को लगाने का अर्थ है कि अब तक जिस मन से मनुष्य संसार में ममता,आसक्ति रखता था और जिस बुद्धि से संसार में ,संसार के बारे में अच्छे बुरे का बोध करता था, उस मन को संसार से हटाकर कृष्ण में लगाए और बुद्धि से यह दृढ़ निश्चय कर ले कि मैं केवल कृष्ण का हूँ और केवल कृष्ण ही मेरे हैं"।
भगवान कहते हैं,जिस व्यक्ति ने,ईश्वर को जानने के लिए आत्मज्ञान प्राप्त नहीं किया,वह ईश्वर को कैसे जान सकता है? आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए चिंतन ज़रूरी है। चिंता नहीं, चिंता चिता समान है और हमारे सारे कामों को उलझाकर उन्हें अर्थहीन बनाती है। किंतु स्वयं में एक बहुत कठिन प्रश्न है। जिसके उत्तर की तलाश में मनुष्य भटकाव के भँवर जाल में फँस जाता है। जान ही नहीं पाता कि यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनकर साथ साथ चलने लगती है। चिंतन हमारे विचारों को पुष्ट करता है।
भगवान कृष्ण के अनुसार कोई भी कर्म न सौ फ़ीसदी सही है और न सौ फ़ीसदी ग़लत है। सिर्फ़ देखना ये है कि जो कर्म हम कर रहे हैं, उससे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का भला हो। जब हम खाते हैं तो किसी की हत्या कर रहे होते है। साँस लेते समय किसी का ज्ञान ले रहे होते हैं।चलते हैं तो भी पैरों तले किसी जीव की जान ले रहे होते हैं। यदि मनुष्य ये सब नहीं करता तो उसका अपना जीवन खतरे में पड़ जाएगा और वो,अपनी जान ले रहा होगा। इसलिए "हे परंतप,अपनी सोच में "तुम"और "मैं" लाने के बजाय कर्म कर"।
यह भी पढ़ें-
वासना के हानिकारक प्रभाव - श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार
डर के हानिकारक प्रभाव - श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार
ईर्ष्या के हानिकारक प्रभाव - श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार
धर्म -अध्यात्म सम्बन्धी यह आलेख आपको कैसा लगा ? अपनी प्रतिक्रियाएं जरूर भेजें। प्रतिक्रियाओं के साथ ही धर्म -अध्यात्म से जुड़े सुझाव व लेख भी हमें ई-मेल करें- editor@grehlakshmi.com
वाइट हैड्स से छुटकारा पाने के लिए 7 टिप्स
आपकी यह कुछ आदतें बच्चों में भी आ सकती हैं
'डार्लिंग, शुरुआत तुम करो, पता तो चले कि तुमने मुझसे...
लेकिन मौत के सिकंजे में उसका एकलौता बेटा आ गया था और...
कमेंट करें