किशोरावस्था में जब किसी लड़के व लड़की को उसकी मर्जी के अनुसार कुछ करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो वह विरोध स्वरूप गुस्सा करते हैं या बिना किसी कारण के गुमसुम बैठे रहते हैं। माता-पिता इसके लिए लड़के और लड़की को ही जिम्मेदार मानते हैं, जबकि इसका कारण अकसर हार्मोन में असंतुलन होता है। डॉ. अनीता कांत कहती हैं कि किशोरावस्था बहुत ही नाजुक संक्रमण काल होता है, जहां बच्चा वयस्कता की दुनिया में कदम रखता है। उस समय बच्चे में कई शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक परिवर्तन हो रहे होते हैं। ये सभी परिवर्तन हार्मोन स्राव के कारण हो रहे होते हैं, जिससे बच्चे को यौवन में प्रवेश करने में मदद मिलती है। इसका उनके मूड और व्यवहार पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

हार्मोनल असंतुलन के कारण
भागती-दौड़ती इस दुनिया में, किशोर व किशोरियों का सैंकड़ों रसायनों के संपर्क में आने के कारण, हार्मोनल असंतुलन होना एक समस्या बनती जा रही है। ये रसायन न केवल प्रदूषित वातावरण में मौजूद होते हैं, बल्कि प्रिजर्वेटिव, खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल किये जाने वाले रंगों, खाद्य और पेय पदार्थों में सुगंध के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले पदार्थों में भी मौजूद होते हैं। फलों और सब्जियों पर इस्तेमाल किये जाने वाले कीटनाशक, प्लास्टिक, सौंदर्य उत्पादों इत्यादि में भी रसायन मौजूद होते हैं, जो उनकी शारीरिक प्रणाली में प्रवेश कर कई तरह की समस्याएं पैदा करते हैं। आमतौर पर लड़के-लड़कियां ताजे उत्पादों सहित संतुलित भोजन का सेवन करने की बजाय जंक फूड जैसे आहार पर अधिक निर्भर रहते हैं, जो उनके हार्मोन को प्रभावित करते हैं।

तनाव
हार्मोनल असंतुलन का एक अन्य कारण तनाव भी है। स्कूलों और कॉलेजों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण किशोर-किशोरियां काफी तनाव में रहते हैं। उन पर सिर्फ पढ़ाई में ही अच्छा करने का दबाव नहीं होता है, बल्कि हर चीज में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव होता है जो उनमें तनाव पैदा करता है। साथियों व माता-पिता का दबाव, भाई-बहन से प्रतिस्पर्धा, दोस्तों के बीच अच्छा प्रदर्शन आदि कुछ ऐसी दैनिक समस्याएं हैं जो किशोरों में तनाव पैदा करती है। तनाव के कारण उनके शरीर से हार्मोन का अधिक या कम स्राव होता है, जिससे हार्मोनल असंतुलन बढ़ता है। यह तनाव शरीर में सभी हार्मोन को विनियमित करने वाली एड्रिनल ग्रंथियों पर अतिरिक्त दबाव डालता है। ये ग्रंथियां तनाव के स्तर से बाधित होती हैं, जिससे हार्मोनल असंतुलन पैदा होता है। यह युवाओं में कई भावनात्मक समस्याओं के साथ-साथ शारीरिक समस्याएं भी पैदा करता है। एड्रिनल ग्रंथियां काफी मात्रा में कोर्टिसोल का उत्पादन करती हैं, जो प्रोजेस्टेरॉन के उत्पादन को कम कर देती है। यह शरीर में वसा के जमाव को भी बढ़ावा दे सकती है जिससे कई किशोर व किशोरियों का वजन अधिक हो जाता है और बाद में उनमें मोटापे की आशंका बढ़ जाती है।

ऐसी स्थिति में क्या करें
माता-पिता को अभिभावक के रूप में, अपने किशोरावस्था के बच्चों में इन लक्षणों की निगरानी रखनी चाहिए ताकि जल्द इलाज करवा कर जटिलताओं को कम करने में मदद मिले। हार्मोन में अचानक वृद्धि के साथ शरीर द्वारा सामंजस्य बिठा लेने पर इनमें से अधिकतर लक्षण गायब हो जाते हैं। अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं तो आपको चिकित्सक से परामर्श करने की जरूरत है।

  • बच्चे इन असंतुलनों से ‘अधिक प्रभावित हो सकते हैं या इसके लक्षणों से बाहर निकल आते हैं, इसलिए माता-पिता या अभिभावकों को किशारों के हार्मोन असंतुलन के बारे में समझना चाहिए और उनके हार्मोन में होने वाले उतार-चढ़ाव को नियंत्रित रखने में सहायता करने के उपाय खोजने चाहिए।
  •  उचित पोषण से हार्मोनल असंतुलन का इलाज संभव है। हार्मोनल असंतुलन आमतौर पर अधिक मात्रा में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करने, शराब और कैफीन के अत्यधिक सेवन के साथ अधिक तनाव और चिंता जैसी गलत जीवन शैली के कारण होते है। इसलिए किशोरों को इन चीजों से दूर रखें।
  • कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों से भी हार्मोनल असंतुलन का इलाज हो सकता है। इसके लिए आप किशोरों के आहार में परिवर्तन कर साबुत अनाज, बीज, नट, अधिक से अधिक फल और सब्जियों और लीनर प्रोटीन को शामिल करना चाहिए। व्यायाम को दैनिक जीवन का एक नियमित हिस्सा बनाना चाहिए। आहार में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
  •  किशोरों के तनाव को कम करें और पर्याप्त आराम करने दें। इस तरह के सरल उपायों से हार्मोन असंतुलन को सही करने में मदद मिलेगी। आप पौधों से प्राप्त होने वाले और आपके शरीर में हार्मोन को संतुलित करने वाले फाइटोएस्ट्रोजन का अधिक सेवन भी कर सकते हैं। यह गोभी, ब्रोकोली, चिक मटर और फलियो आदि में पाया जाता है। 

हार्मोनल असंतुलन के लक्षण

लड़कों में लक्षण
जिस तरह से लड़कियों में यौवनावस्था के दौरान मासिक धर्म की शुरुआत और कुछ शारीरिक व मानसिक परिपक्वता आती है, उसी तरह से लड़कों को भी यौवनावस्था की अवधि से गुजरना पड़ता है। लड़कों में यौवनावस्था के दौरान उनकी आवाज फट जाती है, चेहरे पर बाल उग आते हैं, मुंहासे हो जाते हैं और उनका वजन बढऩे लगता है। किशोरों में हार्मोनल असंतुलन के सबसे आम लक्षणों में से एक लक्षण चिड़चिड़ापन है। इसके लक्षणों में कुछ व्यवहारिक परिवर्तन के साथ-साथ शारीरिक परिवर्तन भी शामिल हैं। हालांकि शरीर द्वारा हार्मोन के अचानक परिवर्तन को समायोजित कर लेने के बाद ये लक्षण खत्म हो जाते हैं। लेकिन, यदि ये लक्षण लंबे समय तक मौजूद रहते हैं, तो समय रहते इलाज जरूरी है।

लड़कियों में लक्षण
लड़कियों में हार्मोनल असंतुलन के लक्षण उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इनमें मुंहासे, मूड में उतार-चढ़ाव, तैलीय बाल, शुष्क त्वचा, मासिकधर्म के दौरान ऐंठन, गड़बड़ी इत्यादि जैसे लक्षण हो सकते हैं। ये लक्षण एक युवा लड़की के सामान्य विकास की अवधि का एक हिस्सा हैं। लड़कियों में हार्मोन के स्तर में असंतुलन के कुछ अन्य लक्षणों में अनियमित मासिक धर्म, अधिक रक्तस्राव, वजन का अधिक बढऩा, रक्त में इंसुलिन का अधिक स्तर, हाइपरथायरॉयडिज्म, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशीलता, स्तन में दर्द और सूजन, सूखे और बेजान बाल, पेट में ऐंठन, मतली और एंड्रोजन हार्मोन के अधिक उत्पादन के कारण चेहरे पर बाल का उग आना शामिल हैं।