गृहलक्ष्मी की कहानियां - गुलाम
Stories of Grihalakshmi

गृहलक्ष्मी की कहानियां – मंगलू ने कड़क होते हुए कहा, ‘‘देख गंगा अब मेरे घर पैसों का पेड़ तो लगा नहीं है। जो बस कर्ज बांटता रहूंगा, अरे मुझे भी पैसों की जरूरत है।

गंगा ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘सो तो ठीक है, लेकिन सेठ जी वैसे भी अभी साल पूरा होने में दो महीने हैं, इतना समय मेरे लिए काफी है।

म्ंगलू के मन में कछ और ही था, इसलिए खुद ही गंगा के घर में अंदर आ कर खटिया पर बैठ गया और बोला, ‘‘देख गंगा मुझे तुझसे दुश्मनी थोड़े ना है, और फिर मैं तुम्हें अपना मानता हूं, इसलिए ज्यादा सख्ती नहीं कर रहा हूं, बस थोड़ा सा मेरा ध्यान रख।

गंगा ने कहा, ‘‘सेठ जी आप ही तो मेरे सब कुछ हैं और आपके भरोसे ही तो गांव में रह रही हूं। नहीं तो मेरे पति के बाद किसी का सहारा नहीं था।?

मंगलू ने कहा, हां, तू सही कह रही है, मैं तो बस यह चाहता हूं कि कभी कभार मेरे पास आ जाया कर, बातें करेंगे तो मन बहल जायेगा। इतना कह कर मंगलू आगे बढ़ गया, लेकिन मंगलू की बात ने गंगा के मन उथल-पुथल मचा दी थी।

‘‘गंगा की उमर अभी 25-26 के आसपास ही थी। एक छोटा सा खेत था, उसमें दोनों काम करके खर्चा चला लेते थे। गंगा के तीखे नैन-नक्श और मांसल देह पर मंगलू कब से लट्टू था, लेकिन गंगा के हृष्टपुष्ट सुखदेव पति के आगे वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था। इसी बीच एक दिन खेत में काम करते सुखदवे को सांप काट लिया और लाख कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका।

जब सुखदेव गंगा को अपनी बाहों में भरता था, तब गंगा अपने दुनिया की सबसे सुखी औरत समझती थी, इसके बाद गंगा को रोजी रोटी की चिंता हुई। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और खुद ही खेती करने लगी। इस बार सुखदेव के क्रियाकरम में काफी पैसे खर्च हो गये थे, इसलिए बीज-खाद के लिए उसने मंगलू से कर्ज लिया था।

गंगा महसूस कर रही थी, मंगलू गांव की जवान जरूरतमंद औरतों को ही कर्ज देता है और कर्ज पटाने का दबाव बना कर, अपनी हवस का शिकार बनाता था। उसकी इस हरकत के कारण गांव की कई औरतों की जिन्दगी भी बरबाद हो गई थी, वहीं गांव का सरपंच भी था, इसलिए उसके खिलाफ कोई बात नहीं कहता था।

अगले दिन मंगलू दोपहर को फिर गंगा के पास आ गया और बातें करते हुए कहने लगा, ‘‘गंगा अभी तो तेरे मस्ती भरे जीने के दिन हैं, तू भी कहां विधवा बन गई है, अरे बिना मरद के औरत अधूरी रहती है, बस एक बार तू हां कर, तेरी जिन्दगी को रंगीनियों से भर दूंगा, ‘‘और इसी के साथ वह गंगा का कभी हाथ पकड़ लेता तो कभी कंधे पर हाथ रख देता।

गांव के कुछ मनचले लड़के अक्सर गंगा के सामने आने पर कहते रहते।
‘‘जरा हमारी बाहों में एक बार तो आ जा, जन्नत का मजा दिला देंगे, इस जवानी को कब तक बचा पायेगी, अरे जिस दिन हाथ आ गई मसल डालेंगे।

लेकिन जब से मंगलू का उसके घर आना-जाना हुआ है सब मनचले लड़के दुबक गये थे। मंगलू 40-45 साल आदमी का था, गांव में उसकी काफी खेतीबाड़ी, पैसा और दबदबा था, रात को गंगा की आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह अपनी जिन्दगी का गणित – भाग लगा रही थी, फिर वह एक ऐसे निर्णय पर पहुंची, जिससे उसका ही नहीं पूरे गांव का भला होने जा रहा था।

अगले दिन गंगा बहुत बन-ठन कर तैयार हुई, उसके अंग अंग से सौन्दर्य फूट रहा था। कसे और छोटे ब्लाउज से उसके उभार जवानी का तकाजा कर रहे थे, सुर्ख झीनी लाल साड़ी में गंगा कामदेवी लग रही थी। जब मंगलू आया तब गंगा ने बड़ी गर्मजोशी के साथ उसका स्वागत किया, खाने के लिए तरह तरह की चीजें बनाई और सामने बैठ कर पंखा झलने लगी।

खाने के बाद मंगलू खटिया पर बैठ गया और गंगा का हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया। गंगा मंगलू का इरादा जानती थी। इसलिए उसने जल्दी से अपने ब्लाउज में हाथ डाल कर एक कागज निकाला और मंगलू से बोली, ‘‘मंगलू इस कागज पर मेरा कर्ज का पैसा लिखा है, ते इस पर दस्तखत कर दे कि तूने इसे माफ कर दिया तो मैं तेरी हो जाती हूं।

मंगलू पर तो गंगा का नशा छाया था, इसलिए उसने कागज पर दस्तखत कर दिये, और वह मंगलू की बांहों में समा गई। मंगलू उसके अंग अंग को मसल रहा था। बहुत दिना बाद एक मजबूत मरद का साथ पा कर गंगा का तन-मन तृप्त हो गया था।

एक महीने बाद मंगलू के घर वकील का नोटिस पहुंच गया, जिसमें लिखा था।
मंगलू ने पूरे होशो-हवाश में अपना पूरा पैसा, जमीन-जायदाद गंगा के नाम लिख दी है, चूंकि गंगा उसकी देखभाल अच्छी तरह से कर सकेगी और इसमें किसी का कोई हिस्सा नहीं होगा।” मंगलू समझ नहीं पाया कि यह सब कैसा हो गया, लेकिन गंगा ने मंगलू को अपना गुलाम बना लिया।