चन्दानी एक भयानक व्यक्ति था, जो उसे छोड़ना चाहता, चन्दानी उसे जीवित रखकर किसी प्रकार का भय मोल नहीं लेता। चन्दानी के आदमी किसी न किसी बहाने उसकी हत्या कर ही देते थे। चन्दानी के गिरोह का अड्डा कहां है, वह नहीं जानता था। अड्डा केवल उसके विशेष व्यक्ति ही जानते थे, परंतु इसके साथ-साथ चन्दानी समाज की आंखों में धूल झोंकते हुए एक अच्छा नागरिक भी बना बैठा था। बड़े-बड़े लोगों से उसका परिचय था, नेताओं के साथ उसका उठना-बैठना था।

कुछ देर बाद लड़की ने अंगड़ाई ली। आंखों की बंद कलियां फड़फड़ाईं। फिर इस प्रकार धीमे-धीमे खुलीं, मानो वह ताकत लगाकर अपने आंखों पर से पलकों का बोझ हटा रही हों।

उसने मानो स्वयं ही बड़बड़ाकर कहा, ‘बैरा।’

बैरा! अजय चौंक गया। उसने इधर-उधर देखा। यहां बैरा कहां से आएगा? परन्तु तब तक वास्तविकता का आभास करके वह  लड़की चौंकते हुए उठकर बैठ चुकी थी। वह कुछ लजाई। फिर मानो अपनी लाज मिटाने के लिए स्वयं से ही बोली, ‘आई एम सॉरी। मैं समझी कि मैं बंगले में सो रही हूं।’

‘आदत की बात है।’ अजय ने उससे बातें करने में स्वयं को भाग्यशाली समझा। पूछा, ‘आप कहां तक जाएंगी?’

‘बॉम्बे।’ लड़की ने अपनी सुनहरी लटों को अंगुलियों द्वारा संवारते हुए छोटा-सा उत्तर दिया।

‘बॉम्बे तो मैं भी जा रहा हूं। बॉम्बे में आप कहां रहती हैं?’

ऊंह! लड़की ने सोचा। स्वयं बात आरंभ करके अब वह पछता रही थी आजकल के नवयुवकों को जरा-सा उत्साह मिल जाए तो हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं। उसने मानो न चाहते हुए उत्तर दिया, ‘पाली हिल में।’ और फिर उसे अधिक बा करने का अवसर न देने के लिए उस लड़की ने अपना टूथपेस्ट, ब्रश, साबुनदानी तथा टॉवल लिया और द्वार खोलकर केबिन से बाहर निकल गई।

अजय ने लड़की का रूखापन पढ़ लिया। उसे दुःख हुआ, परन्तु वह एक अपराधी था। उसे एक भले घर की भोली-भाली लड़की के बारे में सोचने का क्या अधिकार है? उसने अपने मन को मारा। फिर झुककर बर्थ के नीचे देखा। उसका सूटकेस सुरक्षित था। जब लड़की वापस आई तो उसके बाद उसने अजय को एक बार भी अपने से बात करने का अवसर नहीं दिया।

अजय एक गम्भीर स्वभाव का नवयुवक था। वह भी खामोश ही रहा, परंतु दृष्टि थी कि बार-बार लड़की की सुन्दरता की ओर उठ जाती थी।

रेलगाड़ी लगभग ग्यारह बजे अपनी मंजिल पर पहुंची तो वातावरण गरम था। बम्बई का वातावरण यूं भी गरम रहता है। खिड़कियां दोनों ने अपनी ओर की पहले ही खोल ली थीं। गाड़ी बम्बई पहुंच गई। ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रेंगने लगी तो लड़की बहुत उत्सुक होकर खिड़की द्वारा प्लेटफार्म पर खड़ी जनता में किसी को तलाश करने लगी।

तभी गाड़ी के रुकते-रुकते उसे किसी ने देखकर बहुत तेज स्वर में पुकारा, ‘अंशु।’

स्वर किसी लड़की का था।

‘मीना-‘ अजय के केबिन वाली लड़की भी चहक उठी।

अंशु अर्थात् किरण। अजय ने यह नाम मन ही मन दोहराया। उसे बुरे कर्मों से बचाने के लिए एक ऐसी ही किरण की आवश्यकता थी। क्या वह ऐसी किरण प्राप्त करने के लिए अपना जीवन बदल सकता है? यह प्रश्न उसके मन में अपने आप ही उठा तो वह अपने भविष्य के बारे में सोचे बिना नहीं रह सका।

क्या अपने पिता समान उसे भी जीवन भर एक अपराधी जैसा ही जीवन व्यतीत करना है? आखिर कभी तो उसे पुलिस के हाथों लगना ही है। उस समय यदि डाकुओं की गिनती में अखबार के पृष्ठों पर उसकी तस्वीर छपी और इस लड़की ने उसे पहचान लिया, तब यह क्या सोचेगी? देखने में कितना शरीफ लगता था और निकला खानदानी चोर।

अजय को उसकी अंतरात्मा ने धिक्कारा। क्या वास्तव में उसके समक्ष ऐसे गन्दे काम से मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं है?

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