मानव कितना अधिक नीचे गिर सकता है, इस बात का पता चन्दानी को देखकर लगाया जा सकता था। अजय ने पूछा, ‘मैं अपने पिता से मिल सकता हूं?’

‘अवश्य, परंतु हमारे दो व्यक्तियों की उपस्थिति में।’ चन्दानी ने आज्ञा दी।

अजय ने कुछ नहीं कहा।

चन्दानी ने दो व्यक्तियों को उसके साथ कर दिया। फिर बोला, ‘कमरा नंबर पांच।’

कमरा नंबर पांच तहखाने के एक कोने में था।

दोनों व्यक्ति अजय को लेकर उस ओर बढ़ गए। अजय के पिता बंद सलाखों की दो दीवारों के पीछे खड़े शायद उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। बंद सलाखों की ये दो दीवारें इतनी दूरी पर थीं कि बंदी अपने मिलने वाले को छू भी नहीं सके। ऐसा न हो कि हाथ पकड़कर सांत्वना देने या लेने के बहाने वे कोई पत्र व्यवहार कर लें।

अजय अपनी ओर की सलाखों को पकड़कर खड़ा हो गया। वहीं, समीप ही दीवार पर एक कांटे के सहारे कैदखाने की चाभी टंगी हुई थी।

अजय ने देखा, जिस कमरे में उसके पिता कैद हैं, वहां आराम की सभी वस्तुएं हैं- एक सोफा, एक बड़ा पलंग, मेज मेज पर पत्रिकाएं तथा किताबें रखी थीं। एक रेडियो भी था।

अजय ने खेद प्रकट करना चाहा। बोला, ‘पिताजी…’

परंतु फिर इससे अधिक वह कुछ नहीं कह सका।

दीवानचन्द उसे ही देख रहे थे। उनकी आंखों में आंसू छलक आए। उनके तथा अजय के मध्य इतनी दूरी थी कि वे एक-दूसरे को छू भी नहीं सकते थे।

उन्होंने भर्राए स्वर में कहा, ‘बेटा तू…तू मेरी चिंता मत कर। अपना भविष्य देख।’

‘यह कैसे हो सकता है पिताजी?’ अजय ने निराश स्वर में कहा, ‘अपने जीते जी मैं किस प्रकार आपको उन जालिम चीतों का निवाला बनने दूं? ऐसा कभी नहीं हो सकता।’

‘हो सकता है बेटे, अवश्य हो सकता है।’ दीवानचन्द ने कहने को तो कह दिया, परंतु फिर अपनी गलती का एहसास करके वे चुप हो गए। वे अजय के साथ अकेले नहीं हैं। वहां चन्दानी के दो व्यक्ति भी हैं। यदि उन्होंने अपने बेटे को उनकी जान की परवाह न करने का द्वार दिखा दिया तो यह लोग उनके बेटे को इस तहखाने से बाहर निकलने से पहले ही जान से मार देंगे। चन्दानी को इस बात का विश्वास होना आवश्यक है कि अजय अपने पिता को अपने जीवन से अधिक प्यार करता है तथा उनकी सुरक्षा के लिए वह कुछ भी कर सकता है। तभी वह अजय से अपना काम निकाल सकता है और केवल इसी बहाने से ही उसे स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है। आगे अजय का जीवन सुधरना भगवान के हाथ में है।

अजय ने मस्तक पर बल देकर सोचा। उसके पिता अवश्य उससे कुछ कहना चाहते हैं। शायद यही कि वह उनके जीवन की चिंता न करते हुए अपना भविष्य सुधारने का प्रयत्न करे, उनके जीवन के अब दिन ही कितने बचे हैं, परंतु नहीं, वह ऐसा कभी नहीं कर सकता। वह अपना जीवन भयानक खतरों में डालकर सदा अपने पिता का जीवन उनकी आयु की अंतिम सांसों तक सुरक्षित रखेगा। हर बेटे का यही धर्म है। उसके पिता अपना धर्म निभाना चाहते हैं तो वह भी अपना धर्म निभाता रहेगा। अजय ने अपने पिता को आश्वासन दिया। उसके बाद तहखाने से निकलने से पहले उसने अपने हाथों में लिया चश्मा आंखों पर चढ़ाया फिर दो व्यक्ति उसे उसी रास्ते से इस अड्डे के बाहर ले गए, जिधर से वह प्रविष्ट हुआ था। शहर में उससे चश्मा लेने के बाद चन्दानी के आदमियों ने उसे एक दूसरे स्थान पर उतार दिया।

जारी…

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