महिलाओं को अगर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है तो उन्हें बैंकिग की सही जानकारी होनी चाहिए। दरअसल, इस भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के लिए बैंक के साथ रिश्ता कायम करना उन्हें कई सारे लाभ प्रदान कर सकता है। ये उन्हें वित्तीय आत्मनिर्भरता प्रदान करता है, जैसे कि व्यावहारिक बैंकिंग, संपत्ति में सहयोग और पैसा कमाने, वित्तीय, शैक्षिक और रिटायरमेंट योजना में सहयोग करते हैं। साथ ही, बैंकिग के जरिए महिलाएं बचत के लिए भी प्रोत्साहित होती हैं। बात करें भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की तो यहां चार तरह के बैंक हैं, राष्ट्रीय बैंक, राज्य बैंक, निजी बैंक और विदेशी बैंक। जब आप यह विचार करते हैं कि कौन-सा बैंक चुना जाए, तो यह समझना बहुत ही अहम है कि कोई भी एक बैंक किसी दूसरे के मुकाबले बेहतर नहीं है, बल्कि सभी के अपने अपने फायदे हैं। वैसे तो आज सभी बैंक ऑनलाइन सुविधाएं, एटीएम और बैंक के भीतर की सेवाएं उपलब्ध कराते हैं।
कामकाजी महिलाओं के लिए चालू खाता
अगर आप एक कामकाजी महिला हैं, तो ऐसे में खाता खोलने के लिए बैंक का चुनाव आपके नियोक्ता पर निर्भर करता है। वजह यह है कि नियोक्ता कंपनी आपका सैलरी अकाउंट ऐसे बैंक में खुलवाते हैं, जिस बैंक में कंपनी का चालू खाता होता है। कंपनियां ऐसा इसलिए करती हैं, जिससे उन्हें हर महीने पैसा स्थानांतरित करने में आसानी रहे। साथ ही, आप एक से ज्यादा बैंक अकाउंट खोल सकती हैं। एक अपने वेतन के लिए और दूसरा बाकी दूसरी आय के लिए। बशर्ते आप इन दोनों या इससे ज्यादा खातों को चलायमान रख सकें। सैलरी खाते सामान्य तौर पर न्यूतम बकाया रकम पर जोर नहीं देते, लेकिन बाकि दूसरे प्रकार के खातों में कम से कम एक हजार रुपये से लेकर पच्चीस हजार और यहां तक कि एक लाख रूपये होना अनिवार्य है।
ग्रामीण महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस
महिलाओं के लिए ग्रामीण बैंकिंग माइक्रोफाइनेंस बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि इसे ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण तरीका समझा जाता है। हालांकि, शहरी इलाकों में भारतीय आबादी की बड़ी संख्या में बसी हुई है। जो महिलाएं गांवों रहती हैं, उन्हें अपना जीवनयापन करने के लिए छोटे स्तर की औद्योगिक ईकाई चलाने के लिए माइक्रोफाइनेंस की जरूरत होती है। ये महिलाएं फाइनेंस, या कम ब्याज दर पर उन्हें दिए जाने वाले छोटे ऋण पर भरोसा करती हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकें।
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