सास, जोकि बहु के आते ही बहु से सास बन जाती है। यानी उसका प्रोमोशन हो जाता है। और शुरू हो जाता है एक अन कहा सा शासन। ससुराल में सासू मां, एक ऐसा रिश्ता है जिसके नाम और आस-पास होने के अहसास भर से बहु के दिल में बहुत कुछ होने लग जाता है। सास-बहु के बीच के रिश्ते की गर्माहट की गवाही लगभग हर घर कभी न कभी देता ही है। अक्सर उनके बीच वट की खींचा तानी नजर आती है। जिसकी झलक सास के बर्ताव में नजर आती है। 

घर में नई बहू आई है, तो जाहिर है कुछ दिन तो बहू को आराम करना ही था, एक हफ्ता बीत गया, सुबह उठकर सास को ही सुबह का चाय नाश्ता तैयार करना पड़ता था, धीरे-धीरे सास के व्यवहार में बदलाव आने लगा, कि बहू न तो सुबह जल्दी उठती है और नाही चाय नाश्ता कुछ बनाती है, एक दिन सास को गुस्सा आया और बहू के कमरे जाकर कहती है..उठो महारानी सुबह हो गई है, उठ जाओ और सबके लिए चाय नाश्ता तैयार करो, एक बार बोलकर सास कमरे से बाहर आ गई, थोड़ी देर बाद सास फिर बहू के कमरे में आती है और चिल्लाने लगती है, क्या सिखाया है तुम्हारी मम्मी ने इतनी देर तक कौन सोता है, उठो जल्दी जाओ चाय नाश्ता बनाओ, बेटे को ऑफिस जाना है, बहू प्यार से सास से बोली, अरे माजी आप बना लीजिए ना, कल से सुबह जल्दी उठ जाउँगी, सास मूंह बनाकर बड़बड़ाते हुए कमरे से बाहर आई, जबसे आई हैं..तबसे आराम कर रही हैं महारानी जरा सा आज मैंने बोल दिया तो नखरे तो देखो, चाय नाश्ता बनकर तैयार हो गया, बहू कमरे से बाहर आई माजी एक कप चाय मुझे भी दे दीजिए, सास एक कप चाय बहू के पास लाई और बोली ये लो पीलो और कल सुबह जल्दी उठ जाना मैं रोज रोज तुम्हारे लिए चाय नहीं बना पाऊंगी, बहू ने भी ऐसे ही बोल दिया क्या माजी एक कप चाय मांग ली आप तो सुना दे रहे, ये सुनकर सास को गुस्सा आ गया और बोली सुनो महारानी हम तुम्हारे नौकर नहीं है तो तुमको रोज रोज सुबह उठकर तुम्हारे लिए चाय बना देंगे, कल से तुमको ही उठना है चाय नाश्ता तैयार करने के लिए, मुझे अब इन सबसे वास्ता नहीं है……

सास के लिए बहु तो बहुत जरूरी होती है पर उसकी बातें जरूरी नहीं होती। कई बार सासू मां बहू की बात को ऐसे नज़रअंदाज़ करती हैं जैसे मानों कोई दूसरा वहां हो ही नहीं। उनके लिए घर या बाहर के किसी भी मसले में बहु की राय मायने नहीं रखती। ऐसा इसलिए भी क्योंकि अब तब बहु के तौर पर प्रमोटेड सास यही कुछ देखती और महसूस करती चली आई है। अक्सर सास अपनी शासन की सत्ता को बरकरार रखने के लिए ऐसा करती है। कई बार सास का बर्ताव बहु के साथ ऐसा होता है कि बहु की बड़ी से बड़ी उपलब्धि को भी वह सिर्फ कमतर इसलिए आंक जाती है क्योंकि वह बहु की उपलब्धि है। बहु को अयोग्य आंकना सास की वट की जंग में उसे बल देता है। सास के लिए  सिर्फ अपनी पसंद या न पसंद मायने रखती है। बहु की पसंद न पसंद  सास के लिए मायने नहीं रखती। सास के लिए कुछ मायने रखता है तो वह है सास का इमोशनल ड्रामा, उसकी उम्मीदें जिसको पूरा करने की ज़िम्मेदारी बहू को कंधों पर होती है।

सास करे नजरअंदाज

यूं निकालें उपाय 

हर समस्या का समाधान नहीं होता। यहां समस्या सोच और नजरिए की है। ऐसे में अक्लमंदी इसी में है कि समस्या में उलझने के बजाए समाधान पर जोर दिया जाए। यकीनन आपकी खुशी, उपलब्धि में कोई खुश नहीं होता तो कष्ट होता है पर यह भी उतना ही सही है कि किसी भी व्यक्ति की सराहना न मिलने भर से ही आपकी उपलब्धि कम नहीं हो जाती। कुछ इसी सोच के साथ आपको अपनी सास की भाव भंगिमाओं को नज़रअंदाज़ करना है। जैसा कि अब तक आपकी सास आपके साथ करती आई हैं। और जहां तक रही आपकी राय की बात तो सासू मां के सामने नहीं पर घर के बाकि सदस्यों की मदद से आप अपनी राय इनडाइरेक्ट तरीके से रखें। ताकि उसे पूरा सम्मान मिल सके।

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