हिंदू धर्म में चिन्हों और प्रतीकों का बहुत महत्व है। मंगल कार्यों के लिए स्वास्तिक बनाने का भी विशेष महत्व है। कथा, पूजा, हवन, शादी, यज्ञ आदि धार्मिक त्योहारों में स्वास्तिक बनाए जाते हैं। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि स्वास्तिक का अर्थ और इसका महत्व क्या है, आइए जानते हैं
स्वास्तिक का अर्थ और महत्व
स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द का उद्भव संस्कृत के सु और अस्ति से मिलकर बना है। यहां सु का अर्थ है शुभ और अस्ति से तात्पर्य है होना। स्वास्तिक का अर्थ है शुभ हो कल्याण हो। स्वास्तिक के चिन्ह का इस्तेमाल कई सदियो से हिंदूए बौद्ध और जैन धर्म में होता आ रहा है। प्राचीन समय में एशिया आने वाले पश्चिमी यात्रियों इस चिन्ह के सकारात्मकता से प्रभावित होकर घर लौटने पर अपने घरों पर इसका इस्तेमाल करने लगे। 20 वीं शताब्दी आते आते स्वास्तिक पूरे विश्व में सौभाग्य और मंगल कामना के रुप में इस्तेमाल होने लगा। स्वास्तिक हर दिशा से देखने पर समान दिखाई देता है इसलिए घर के वास्तु दोष को दूर करने के लिए यह बहुत लाभकारी माना जाता है। दरअसल स्वास्तिक को वास्तुशास्त्र में वास्तु का प्रतीक भी माना गया है। मान्यता है कि यदि घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाया जाए और द्वार के ठीक ऊपर मध्य में तांबे का स्वास्तिक लगाया जाए तो इससे समस्त वास्तुदोष दूर हो जाते हैं। स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशांति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिह्न को प्रतिष्ठा, मान.सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना गया है।
मुख्य द्वार
वास्तु शास्त्र में घर के मुख्य द्वार की दोनों दिवारों पर अगर स्वास्ति चिह्न बनाया जाए तो यह घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। घर के किसी भी तरह के वास्तु दोष के गलत प्रभावों से राहत प्राप्त होती है और सुख.समृद्धि आती है।
घर के आंगन में
वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर घर के आंगन के बीचों.बीच मांडने के रूप में स्वास्तिक बनाया जाए तो यह बेहद ही शुभ माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान अगर घर के आंगन में गोबर द्वारा स्वास्तिक बनाया जाए तो इससे पितरों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही घर में सुख.समृद्धि आती है।
पूजास्थल
घर में जहां आप पूजा करते हैं उस मंदिर में स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से भी कई लाभ मिलते हैं। इस चिन्ह के ऊपर देवताओं की मूर्ति स्थापित करने से भगवान की कृपा व्यक्ति पर बरसती है।
तिजोरी
अगर घर की तिजोरी में स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाए तो इससे व्यक्ति के जीवन में समृद्धि बनी रहती है। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं। इससे घर में धन की कमी नहीं रहती है।
व्यापार वृद्धि के लिए स्वस्तिक का प्रयोग
अगर आपको लगातार अपने व्यापार में घाटा हो रहा है और लग रहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद आपका व्यापार आगे नहीं बढ़ रहा है तो आपको स्वस्तिक के माध्यम से वास्तु दोष निवारण करने की विधि बताई गई है। इसके लिए आपको लगातार 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां पर सूखी हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना होगा। स्वास्तिक बनाने के बाद आप यहां पर पंचोपचार पूजा अवश्य करें तथा आधा तोला गुड़ का भोग भी लगाएं। वास्तुशास्त्री कहते हैं कि कार्यस्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वास्तिक चिन्ह बनाने से आपको अपने कार्य में बेहद सफलता मिलती है।
अच्छी नींद हेतु स्वास्तिक का प्रयोग
कई बार ऐसा होता है कि रात को सोने के समय इंसान को बेचैनी महसूस होने लगती है और नींद नहीं आती है तथा आंख बंद करते ही बुरे सपने परेशान करने लगते हैं। वास्तु शास्त्री कहते हैं कि आपको अपनी तर्जनी अंगुली से सोने से पहले स्वास्तिक का निर्माण करना चाहिए और उसके बाद सोना चाहिए। इससे आपको सुकून भरी नींद आती है।
स्वास्तिक निर्माण की सही विधि
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन प्लस का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।
काला स्वास्तिक का महत्व
आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है। कहा जाता है कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक नकारात्मक ऊर्जा तथा भूत.प्रेत आदि को घर में प्रवेश करने से रोकता है तथा किसी बुरी नजर वालों से बचने के लिए भी काला स्वास्तिक बनाया जाता है।
यहां बनाने से बचें स्वास्तिक
स्वास्तिक बेहद शुभ चिन्ह है इसलिए इसे अशुद्ध या गंदे जगह पर बनाने से बचना चाहिए। ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसारए शौच की दीवार या बेहद गन्दी जगह स्वास्तिक बनाने से विवेक क्षीण होता है और घर में दरिद्रता आ जाती है।
मंगल भावों को प्रकट करने वाले और जीवन में खुशियां भरने वाले चिह्नों में से एक है स्वस्तिक। उह्नोंने स्वस्तिक के रहस्य को सविस्तार उजागर किया और इसके धार्मिकए ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी बताया। आज स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग.अलग रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिह्न व अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि कई हजार वर्ष पूर्व मानव सभ्यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिह्न का प्रयोग करती थी। सिन्धु घाटी से प्राप्त मुद्रा और बर्तनों में स्वस्तिक का चिह्न खुदा हुआ मिला है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा में भी स्वस्तिक के चिह्न मिले हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों में स्वस्तिक का महत्व भरा पड़ा है। मोहन जोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है।
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