शादी को तीन साल बीत चुके थे, अब अवनी की गोद में एक नन्ही सी परी सितारा खेलती थी। जैसे जैसे वो बड़ी हो रही थी। अवनी दोबारा से नौकरी करने से ख्वाब सजाने लगी। इसी बीच उसे एक बड़ी कंपनी से आफर भी आया, लेकिन बच्चे की जिम्मेदारी के कारण उसने उस आफर को ठुकरा दिया और घर की जिम्मेदारियां उठाने लगी। अब वक्त बीत रहा था। अब सितारा दो बरस की होने को थी। अवनी ने घर में रोजाना होने वाली नोक झोक और तकरार से मुक्ति पाने के लिए एक कंपनी में जाॅब ज्वाइन ली। अब वो आफिस में मसरूफ रहने लगी। हांलाकि दिनभर सितारा की यादों में ही खोई रहती थी। अवनी ने एक दिन अचानक सासू मां से कहा कि बच्चे की देखभाल के लिए कोई नैनी रख दें क्या। तो फौरन सासू मां ने ये कहकर चुप करवा दिया कि नौकर की जरूरत तो मुझे भी है, तो मेरे लिए भी एक नौकर अपांईट कर लो। अब अवनी दिनभर आफिस में काम करती और फिर घर पहुंचकर बच्चे की देखभाल में जुट जाती। अब सासू मां का झुकाव धीरे धीरे देवरानी जी की ओर बढ़ने लगा। अवनी के आने से पहले ही देवरानी और सासूं मां चाय नाश्ता कर लेते थे और उसे पूछने की बजाय, ये कहकर वहां से उठ जाते थे कि रात होने को हो, जरा जल्दी आ जाया करो। अब अवनी रात का खाना बनाने के लिए रसोई में जाती, तो उसे न सास न देवरानी किसी का भी साथ नहीं मिल पाता था।

 

कुछ वक्त के लिए काम वाली बाई ही रात का खाना बनाने लगी थी। मगर खाने का स्वाद बदल जाने की बात कहकर उसकी भी छुट्टी कर दी गई। अब हालात ऐसे हो चुके थे कि हर बात में देवरानी की सलाह पर काम होने लगे थे। मगर कहते हैं न कि वक्त का चक्र घूमता हुआ अपनी जगह पर पहुंच ही जाता है। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ। अब देवरानी को लगा कि सासू मां को वो अपने बस में पूरी तरह से कर चुकी है। फिर क्या था उसने धीरे धीरे सासू मां से गहनों की डिमांड करनी शुरू की। पहले पहल, तो वो उसकी सभी फरमाइशें पूरी करने लगीं। मगर फिर धीरे धीरे वो उसकी चाल समझ रही थी। एक दिन जब अवनी आफिस से लौटी, तो सासू मां अकेली बैठी थी और कुछ परेशान लग रही थी। जब पूछा तो बोलीं कि छोटी बहू मुझे मेरी सोने की चेन वापिस नहीं लौटा रही है और मुझसे बार बार हीरे के झुमके मांग रही है।

 

अब सासू मां को परेशान देखकर अवनी ने उन्हें समझाया और कहा कि आप इस बारे में देवरजी से बात करो। तभी सासू मां के मूंह से निकला, तुम्हें तो इस घर में आए पांच बरस हो गए हैं, पर तुमने तो कभी कुछ नहीं मांगा बहू और इसे देखो, अभी आए हुए छ महीने भी नहीं हुए और बात बात पर नई नई चीजों की डिमांड करती है। अवनी ने उन्हें समझाया और हाथ मूंह धोकर रसोईघर में आ गई। तभी सासूं मां भी फौरन रसोई में आई और कहा जाओ तुम सितारा के साथ कुछ वक्त बिताओ। आज से रात का खाना छोटी बहू की बनाएगी। अब कुछ देर बात पिताजी भी आफिस से लौट आए। उन्होंने आते ही रोज की तरह सितारा को आवाज लगाई और फिर उसको अपनी गोद में बैठा लिया। अब माजी की चिंता ज्यों की त्यों बनी हुई थी। उन्होंने पिताजी को छोटी बहू की डिमांड बताई और कहा कि वे छोटी बहू से उनकी चेन उन्हें वापिस लेकर दें। अभी ये किस्सा सुलझा भी न था कि छोटी बहू रोते रोते कमरे में आ गई और कहने लगी कि मेरा सोने का नेकलेस टूट गया है, मुझे ठीक करवाना है। अब पिताजी ने उसे चुप करवाया और इतवार को ज्वैलर के पास चलने के लिए कहा। अब इतवार सुबह छोटी बहू जाने के लिए तैयार थी। हांलाकि देवरजी एक सीधे साधे और समझदार इंसान थे। उन्होंने कहा कि नेकलेस मां को दे दो वो भाभी के साथ जाकर ठीक करवा लाएंगी। मगर छोटी बहू कहां किसी की सुनती थी। वो कड़े शब्दों में बोली, भाभी क्या करेंगी जाकर, मैं चलती हूं माजी आपके साथ। शादी के बाद अवनी को लिए बगैर घर का कोई गहना नहीं खरीदा जाता था। अब अवनी ने माजी को इशारे में समझाया और छोटी बहू के साथ जाने के लिए कहा, लेेकिन पिताजी नहीं माने। अब ज्वैलर के पास पहुंचते ही उसको पहले टूटा हुआ नेकलेस दिखाया, तो उसने बताया कि ये खुद से तोड़ा गया है। मगर छोटी बहू कहां किसी की बात मानने वाली थी। उसके मन में तो हीरे के झुमके लेने की लालसा थी। सुनार ने बोला कि ये जुड़ तो जाएगा, मगर कुछ पैसे लगेंगे। तभी माजी ने कहा कि बहू तुम्हे हीरे के झुमके लेने थे न, तो तुम इसके बदले एक चेन और झुमके ले लो। मगर छोटी बहू कहां मानने वाली थी। वो सुनार से कहने लगी कि आप इस सेट को बना दो। हम अगले हफ्ते ले जाएंगे और मुझे हीरे के झुमके दिखा दो। अब ये बात मां और पिताजी को थोड़ी अटपटी लगी। उन्होंने कहा कि बहू अभी तो हम इतने पैसे नहीं लाए हैं। अब छोटी बहू आग बबूला होकर वहां से चली गइ। ये देखकर सुनार भी हैरान था। अब सभी घर वापिस लौट आए और परेशान थे। तभी अवनी पिताजी के पास गई और बोली पिताजी ये मेरे हीरे के झुमके हैं और ये वो सोने की चेन है, जो सितारा के जन्म के वक्त मुझे मेरी मां ने दी थी। आप अभी ये चीजें छोटी बहू को दे दीजिए, फिर जब पैसे आएंगे, तो नई बनवा दीजिएगा।  पिताजी तो पहले से ही अवनी की खूबियों से वाकिफ थे, मगर अवनी की ये बातें सुनकर सासू मां भी खुद को कमजोर और छोटा महसूस करने लगीं। तभी पिताजी बोले अवनी बहू मेरे घर का एक मजबूत स्तंभ है, जो हर परेशानी में मजबूती के साथ खड़ी रहती है। पिताजी ने अवनी को अपने पास बुलाया और कहा कि बहू अपना सामान तुम अपने पास रख लो। जहां तक बात छोटी बहू की है तो अगर मैं चाहता तो उसकी सारी डिमांड पूरी कर सकता था। मगर उसके अंदर विनम्रता, प्यार और आदर का भाव मुझे अब तक नजर नहीं आया है। हो सकता है कि वो तुम्हे देखकर बदल जाए। मगर तुम जैसी हो, बस वैसी की रहना एक मजबूत स्तंभ की तरह।       

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