ऐसा क्यों होता है कि रिश्तों को निभाते निभाते औरत खुद से ही कट जाती है , अपनी ख़ुशी अपने दुःख अपने शौक सब मर जातें हैं और वो रिश्ते जिनके लिए उसने अपनी आहुति दे दी उनमे भी जीवन्तता नही रहती। किरण लगातार अपनी सोचो में ही गुम थी। आज घर में लोगों का आना जाना लगा हुआ था।आँगन में उसकी सास की मृत देह पड़ी थी और उनके अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही थी, जो रिश्तेदार जिनको उसने आज तक नही देखा अपनी छाती पीट पीट कर रो रहे थे जैसे उनके मरने का सबसे ज्यादा दुःख उनको ही हुआ है। इसमें उसकी सास की देवरानी और जेठानी थी जिनकी कभी भी आपस में नही बनी और इस अनबन के कारण ही उनसे कभी परिचय नही हो सका। किरण चुपचाप सारी तैयारियों में साथ दे रही थी, उसकी दोनों ननदें भी फूट फूट कर रो रही थी जो अभी अभी शोपिंग करके घर में घुसी थी। रह रह कर तिरछी आँखों से किरण की तरफ देखते हुए ताना भी मार रही थी कि ‘’ भाभी को तो दुःख ही नही है देखो कैसे चुप चाप बैठी हुई है ‘’महिला रिश्तेदार तो उसके मुह पर ही उसे पागल कह रही थी ‘’कमली लागे है जे नू ‘’ किरण को सब समझ आ रहा था ,पर वो किसी से कुछ नही बोल रही थी।

अर्थी उठते ही उसका दिल भर आया आंसू की दो बूँद कोने पर आकर रूक गयीं।क्या कहे वो किस्से कहे अपने मन की बात। विवाह के तीसरे दिन से ही सास ने उसका जीना हराम कर दिया था, सास की नज़र में वो बहू कम नौकरानी ज्यादा थी। आज बीस साल गुजरने के बाद भी उसकी वही स्थिति थी क्योंकि उसका पति अपनी बहनों की आँखों का तारा जो था, वो जो कहती वही वो करता। उसे लगा शायद अब उसकी स्थिति में थोडा सुधार होगा, शायद रिश्तेदारों को एहसास हो कि उसने आखिरी वक़्त तक अपनी सास की बहुत सेवा की। पर ऐसा कुछ भी नही हुआ वो कल भी तिरस्कृत थी और आज भी।

सास की मौत के बाद ननदों ने घर को अपना समझ लिया और हर मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप उसको अखरने लगा किरण ने एक दो बार दबे जुबान में अपने पति को कहा भी पर पति ने उसे दांत कर चुप करा दिया।

बच्चे भी बड़े होकर अपनी पढ़ाई के लिए बाहर चले गए। उनके जाने के बाद किरण और भी अकेली पद गई , उधर उसकी ननदें घर में आकर लंच डिनर खा कर ही जाती थी किरण काम करते करते थक जाती थी। पढ़ी लिखी तो थी पर आज तक उसकी पढाई का कोई उपयोग नही हुआ था। न तो पति पैसे देता था और न ही इज्ज़त। मायका तो माँ बाप के मरने के बाद ख़त्म हो जाता है ऐसे में उसे लगता था कि उसका कोई भी नही लावारिस है वो।

एक दिन ऐसा आया कि उसकी एक ननद ने उस पर मिठाई की चोरी का इलज़ाम लगा दिया। इतना घटिया सोच, उसको लगा उसको सरे बाज़ार नंगा कर दिया हो। अब शायद निर्णय लेने का वक़्त आ गया था, उसने अपनी ननद को बोल दिया आप अपना घर सम्हालो यहाँ की चिंता छोड़ दो अब आपका भाई भी दो बड़े बड़े बच्चो का बाप है कोई दूध पीता बच्चा नही। आज पतिदेव को जोश आ गया और उसने भी किरण की पिटाई कर दी। किरण को समझ नही आ रहा था कि उसकी गलती क्या थी ?

खैर और बुरा हो भी क्या सकता था ईश्वर ने नसीब ही ऐसा लिखा था कि सर्वगुण संम्पन होते हुए भी लाचारी हावी थी। अब उसने अपने नसीब से ही लड़ने का प्रण कर लिया, उसे मालूम था की उसके निर्णय का बहुत विरोध किया जाएगा और हो सकता है उसे घर भी छोड़ना पद जाए। पर अब वो पहले वाली किरण नही रही। अब उसकी नज़रें अखबार में छपे क्लासिफाइड कॉलम में घूमती रहती, एक दो जगह इंटरव्यू के लिए बुलाया, वो घर का सारा काम करके गई और आयु के कारण रिजेक्ट हो गई। घर आई तो सब ने खूब मज़ाक उड़ाया, ‘’ आ गई मैडम नौकरी करके ‘’,” बौस ने खास तरीके से इंटरव्यू लिया होगा।” ‘’बुढ़ापे में मैडम नौकरी करेंगी‘’ किरण ने किसी भी मज़ाक का कोई प्रत्युत्तर नही दिया इसे भी अपने नसीब का एक हिस्सा मान कर सहन कर लिया। शायद वक़्त उसको और सहनशील बना रहा था, हारना तो अब है नही ये उसने सोच लिया था।

आज फिर इंटरव्यू के लिए जाना था, इंटरव्यू हुआ, सैलेरी बहुत कम थी पर थी तो न। किरण ने हां कर दी। काम भी उसकी मन पसंद का था  ऑफिस स्टाफ को मैनेज करना था। आज एक महीने के बाद उसकी पहली तनख्वाह उसके हाथ में थी उसे ऐसा लग रहा था कि सारा आसमान उसका है सारी जमीन उसकी है सारी कायनात उसकी है, उसने अपनी निगाहें ऊपर करके कहा ‘’ बहुत इम्तिहान लिया मेरा ‘’ बस अब और नहीं।

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