जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि यह कार्य मैं कर सकता हूँ तो इसे आत्मविश्वास कहते हैं,लेकिन जब वह यह सोचने लगता है कि,यह काम केवल मैं ही कर सकता हूँ तो इसे ईगो  कहते हैं.ज़रूरत से ज़्यादा उपलब्धियाँ,प्रतिस्पर्धा का भाव,कुछ अलग करने की,दूसरों से बड़ा दिखने की सोच,मनुष्य के अंदर ईगो को जन्म देती हैं.शुरू में यह भाव आवेश हमारे वश में होता है,पर समय बीतने पर यह इतना बलशाली हो ज़ाता है कि व्यक्ति उसका सेवक बन जाता है.जीवन उस मरुस्थल के समान बन जाता है,जिसके ईगो-तृप्ति की प्यास मृगतृष्णा बन जाती है

कहीं आप भी तो ईगो की शिकार नहीं? तो प्रस्तुत हैं कुछ सुझाव-

१-  हर बात को व्यक्तिगत तौर पर न लें,यदि कोई क्रोध के आवेश में कुछ कह जाता है ,या अपनी किसी उपलब्धि,प्रमोशन,या अपने बच्चे,पत्नी,की प्रशंसा करता है,तो ज़रूरी नहीं वो आपको नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है.उसकी उपलब्धियां आप से बढ़कर होती हैं तो इसे आप व्यक्तिगत रूप से न लें.

२- अपनी ग़लतियों को स्वीकारें-इंसान ग़लतियों का पुतला है. कहते हैं यदि एक ऊँगली दूसरे की तरफ़ है,तो चार आपके अपनी तरफ़ अभी हैं.अहंकारी व्यक्ति छिद्रन्वेशन के शिकार होते हैं.वो हमेशा दूसरों की ग़लतियाँ ही ढूँढते हैं,ज़िद्दी और स्वार्थी होने के बजाय अपनी ग़ल्ती मानना सीखें.आप का क़द छोटा नहीं हो जाएगा.

३-ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ न समझें- दुनियाँ में आपके जैसे क़ई हैं,बल्कि आप से भी बेहतर हैं. ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ समझने के बजाय दूसरों के गुणों को भी मान और सम्मान देने का प्रयत्न करे

४-शुक्रगुज़ार हों-यदि आप सुंदर है,समझदार और क़ाबिल हैं तो ,फूल कर कुप्पा हो जाने के बजाय,ईश्वर प्रदत्त इन उपलब्धियों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें,नम्र भाव से सोचें ये सब हर किसी को नहीं मिलता.यदि आपको मिला है तो ,इन चीज़ों पर घमंड करने के बजाय ख़ुद को भाग्यशाली समझें.

५- दूसरों की सराहना करें-हमेशा अपनी सराहना करने,या सुनने के बजाय,दूसरे की सराहना करने की भी  कोशिश करें.”आज तुम बहुत सुंदर दिख रही हो,तुम्हारा घर सुंदर दिख रहा है,ये ड्रेस तुम पर बहुत फ़ब रही है.”वग़ैरह वग़ैरह.ऐसा व्यवहार आपको सामने वाले की नज़रों में ऊपर उठा देगा.

६-ड़ींगें न मारें-यदि आप अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए ड़ींगे मरती हैं( मैं ये कर सकती हूँ,ये कर लूँगी) तो आप ग़लत हैं. ऐसा करके आप ख़ुद को ख़ुश भले ही कर लें लेकिन लोगों की नज़रों में कभी ऊपर नहीं उठ सकतीं.

अंत में ,घमंड तो रावण का भी भगवान ने समाप्त किया था,आप और हम तो एक अदना सा इंसान ही हैं. कोई दूसरा आपके ईगो को समाप्त करे आप ख़ुद को संभालने का प्रयास करें

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