4th March 2021
बच्चों को स्कूल भेजना है और कोरोना का डर भी है। ये डर हर बच्चे के पैरेंट्स के मन में है। जो लाजमी भी है। देश के कई राज्यों में स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों को खोलने के लिए सरकार ने आदेश दे दिए हैं। ऐसे में सुरक्षा का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।
कोरोना महामारी ने सबकी जिंदगी पर पहरा सा लगा दिया। लोगों की रफ़्तार भरी जिंदगी में मानों ब्रेक सा लग गया हो। इस दौरान लोगों के मन सिर्फ एक ही दहशत रही कि कहीं वो कोरोना संक्रमण के चपेट में ना जाएं। सरकार द्वारा जारी की गयी, गाइडलाइन के चलते सभी को एतियात बरतने की हिदायत दी। जिसमें एक दूसरे से दो गज की दूरी, मास्क का इस्तेमाल और सेनिटाईजर का इस्तेमाल भी जरूरी बताया है। जिसका लोगों ने भरपूर सहयोग भी दिया। कोरोना संक्रमण को अब लगभग एक साल हो चुके हैं। लोगों की जिंदगी एक बार फिर से पटरियों पर लौटने लगी है। सभी ने अपने-अपने काम फिर से शुरू कर दिए हैं। सभी संस्थान क बार फिर से शुरू हो गये हैं। ठीक उसी तरह अब 11 महीने के बाद सरकार ने स्कूल भी खोल दिए हैं। बच्चों में जितना उत्साह है उससे कहीं ज्यादा पेरेंट्सके मन में इस बात की चिंता है कि कहीं उनका बच्चा संक्रमण से पीड़ित ना हो जाए। ये डर लाजमी है। लेकिन इन सब के बीच पेरेंट्स सावधानी बरतेंगे तो अपने बच्चे को कोरोना से सुरक्षित रखेंगे। ये सुरक्षा कैसे करनी है, आज इस खास लेख के जरिये आपको बताएंगे।
1. स्कूलों को भी रखना होगा ध्यान- स्कूल खुलने के बाद पेरेंट्स की ये सोच बिलकुल जायज है कि, उन्हें अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहिए या नहीं? क्या उनके बच्चे को वो सुरक्षा स्कूल में मिल पाएगी, जो सुरक्षा वो अपने बच्चों को देते हैं? ऐसे में कोविड-19 को देखते हुए स्कूलों को भी अपने सिद्धांतों पर विचार करने की जरूरत है।
• बच्चों में कोरोना का प्रसार ना हो, इसकी जिम्मेदारी स्कूल की होनी चाहिए।
• महामारी के बाद स्कूल खोलने से पहले सारे नियमों का ख्याल रखना चाहिए।
• कोविड से जुड़े पर्याप्त परीक्षण संसाधन का ख्याल रखना।
• महामारी के बारे में हर जानकारी रखना, और स्कूल को उसी के अनुरूप समायोजित करना।
• छात्रों के साथ शिक्षकों और कर्मचारियों की सुरक्षा का ख्याल रखना।
• कोरोना को लेकर नई रणनीति बनाकर उसमें काम करना।
2. बच्चों और किशोरों का रहे ख्याल- स्कूल-कॉलेज खोले जाने के बाद बच्चों और किशोरों में कोरोना के लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि इनमें संक्रमण के ऐसे लक्षण होते हैं, जो कभी-कभी पहचाने नहीं जा सकते। आजकल बच्चों और किशोरों में इन्फ्लुएंजा का प्रकोप भी बढ़ रहा है जिससे बच्चे और किशोर ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं। ये गम्भीर नहीं होता। लेकिन इससे बचाव भी बेहद जरूरी है।
• 10 साल से कम के बच्चों में संक्रमण फैलने की संभावना कम होती है।
• 10 साल से ज्यादा के बच्चों में संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है।
• वयस्कों में ये तेजी से फ़ैल जाता है।
• दो साल से ज्यादा के बच्चों को स्कूल में मास्क लगाए रखने पर जोर देना चाहिए।
• उन्हें शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
• ये सावधानी किशोरों के लिए भी जरूरी है।
• इस सुरक्षा का ख्याल स्कूल-कॉलेज में उपस्थित छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक और कर्मचारियों को भी रखना है।
3. शारीरिक दूरी का क्या हो सही उपाय- बड़े तो फिर भी एक दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने की कोशिश कर सकते हैं, बच्चों को भी पेरेंट्सघर पर इससे जुड़ी सावधानी बरत सकते हैं। लेकिन जब स्कूल में बच्चे जाते हैं, तो इस बात का ख्याल रखना कठिन हो जाता है। ऐसे में स्कूलों और कॉलेज को विशेष प्रबंध करना चाहिए, बच्चों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन किया जा सके।
• स्कूल को दो पालियों में बांटा जाए।
• एक बार में कम ही बच्चों को क्लास में बैठाएं।
• बच्चों को कार्टून के जरिये सारे नियमों का उचित पाठ पढ़ाएं।
• बैठने की डेस्क को कम से कम 6 फीट की दूरी पर लगाएं।
• स्कूलों में बच्चों के लिए कपड़े का कवर अनिवार्य है।
• बच्चों से सभी नियमों का पालन सख्ती से कराना चाहिए।
4. कैसी हो स्कूलों की रणनीति- बड़े बच्चों के मुकाबले छोटे बच्चों से नियमों का पालन करना काफी मुश्किल भरा हो सकता है। ऐसे में प्राथमिक स्कूलों और उच्च प्राथमिक स्कूलों को रणनीति बनानी चाहिए। जिसमें वो सभी तरह की गाइडलाइन को फॉलो करें। इसके लिए पेरेंट्स को बच्चों को इस बात का अभ्यास करा सकते हैं।
• दो साल से ज्यादा के बच्चों को मास्क लगाने के लिए प्रेरित करें।
• बाहरी चीजों को छूने से बचना चाहिए।
• स्कूल या कॉलेज भवन में कम लोगों को हिन् एंट्री दी जानी चाहिए।
• स्कूल या कॉलेज में भीड़ जमा ना होने दें।
• एक्टिविटी पर कम फोकस करना होगा।
• शिक्षकों के क्रॉसओवर को संभव सीमा तक कंट्रोल करें।
5. खास बच्चों के लिए खास को व्यवस्था- आम बच्चों की अपेक्षा विकलांग बच्चों का ख्याल रखना बेहद मुश्किल होता है। वो खास सुरक्षा और खास शिक्षा के हकदार होते हैं। संक्रमण से बचने के लिए विशेष बच्चों का खास ख्याल रखना होगा। ताकि वो कोरोना की चपेट में ना आ सके। ऐसे में बच्चों का ख्याल कैसे रखा जाए यह भी चिंता का विषय है।
• विशेष बच्चों और किशोरों की जरूरत का ख्याल रखना होगा।
• कोरोना को लेकर सभी दिशा निर्देशों को पूरा करना होगा।
• एक दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने के प्रयास करने होंगे।
• विकलांग छात्रों के लिए शिक्षकों और कर्मचारियों को भी सावधानी बरतनी चाहिए।
6. परिवहन को लेकर भी बरतनी होगी सावधानी- छात्र स्कूल या कॉलेज जाने के लिए परिवहनों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में संक्रमण के फैलने के चांसेस भी ज्यादा बढ़ जाते हैं। ऐसे में न सिर्फ पेरेंट्स बल्कि खुद बच्चों को भी सावधानी बरतनी होगी। जिससे वो अपना बचाव बेहतर तरीके से कर सकें।
• जो बच्चे पैदल या अपने साधनों से आते हैं, उनके लिए सुरक्षित विकल्प बनाने चाहिए।
• बस से सफ़र करने वाले छात्रों को लक्षणों की पहचान होनी जरूरी है।
• बस में दूरी बनाने का भी ख्याल रखना चाहिए।
• बस की जिस सीट में छात्रों को नहीं बैठना है उसमें टेप की मदद से क्रॉस का निशान बना दें।
• मास्क को लगाए रखना जरूरी होना चाहिए।
• बस में भीड़ जमा ना करें।
• बस की खिड़कियों को खुला रखें।
• बस में पर्याप्त सफाई व्यवस्था हो, इसका भी ख्याल रखें।
7. प्ले ग्राउंड और कैफेटेरिया में भी हो सुरक्षा- स्कूलों और कालेजों में बच्चों का प्ले ग्राउंड होना लाजमी हैं। बच्चों की एक्टिविटी के लिए विशेष सावधानी बरतनी होगी, जिससे संक्रमण ना फ़ैल सके और छात्र सुरक्षित रहें। वहीं बात अगर कैफेटेरिया की करें तो वहन भी साफ़-सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। जिससे संक्रमण का फैलाव ना हो सके।
• खेल के समय समूहों को छोटा करने की कोशिश करें।
• आउटडोर ट्रांसमिशन खेलों पर कमजोर देना चाहिए।
• मैदाम में खेल उपकरणों का आचे से सैनिटाइजेशन किया जाना चाहिए।
• बच्चों को खाद्य सुरक्षा दी जानी चाहिए।
• छात्रों के लिये अलग-अलग लंच ब्रेक का फार्मूला तैयार करें।
• खुले में लंच करने की कोशिश करें।
• बच्चा हो या बड़ा उन्हें हाथ धोने और साफ़-सफाई के लिए प्रोत्साहित करें।
• खाने से पहले और खाने के बाद में सैनिटाइजर का उपयोग करें।
ये कुछ ऐसी सावधानियां हैं, जो स्कूल और कॉलेज प्रशासन को ध्यान में रखने की बेहद जरूरत है। ये एक जिम्मेदारी भी है। एक ऐसी जिम्मेदारी जो पेरेंट्स ने स्कूलों और कॉलेजों के प्रति जताई है। कोरोना काल में लगातार बढ़ते मामले किसी भी अभिभावक के लिए डर का विषय है। जो लाजमी है, ऐसे में उनके मन में सुरक्षा के प्रति सवाल उठना भी लाजमी है। अगर शैक्षिक संस्थान अपने रवैये और अपनी जिम्मेदारी के प्रति चेत जाएं, वो पेरेंट्स की उम्मीदों पपर भी खड़े उतरेंगे, और कोरोना के बाद स्कूल खोलने के सरकार के फैसले की भी लाज रख पाएंगे।
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